Book Title: Jain Darshan me Shraddha Matigyan aur Kevalgyan ki Vibhavana
Author(s): Nagin J Shah
Publisher: Jagruti Dilip Sheth Dr

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Page 51
________________ जैनदर्शन में सम्यग्दर्शन मतिज्ञान केवलज्ञान को सिद्ध करना हो उसे पक्ष कहा जाता है। साध्य को जहाँ सिद्ध करना हो वहाँ ही उसके साधन का ज्ञान पक्षधर्मताज्ञान कहा जाता है। अनुमान के लिए व्याप्तिज्ञान और पक्षधर्मताज्ञान आवश्यक है। उन के बिना अनुमान नहीं किया जा सकता। सपक्ष वह है जो पक्ष के अतिरिक्त ऐसी वस्तु है जहाँ साध्य का अस्तित्व ज्ञात है। विपक्ष वह है जो पक्ष के अतिरिक्त ऐसी वस्तु है जहाँ साध्य का अभाव ज्ञात है। व्याप्ति अर्थात् व्याप्य होने पर व्यापक का होना ही अथवा व्यापक होने पर जहाँ व्यापक हो वहाँ ही व्याप्य का होना ।48 साधन का साध्य के बिना, नियम से नहीं होना यह साधन का साध्य के साथ अविनाभावसम्बन्ध है। इस अविनाभावसम्बन्ध ही व्याप्ति है। जैन मतानुसार व्याप्ति का ग्रहण तर्क से होता है। ऐसे कितने सम्बन्ध हैं जिनके सम्बन्धी के बीच व्याप्तिसम्बन्ध हो ? बौद्ध कहते हैं कि कार्यकारणभाव और स्वभावसम्बन्ध ये दो ही ऐसे सम्बन्ध हैं जिनके सम्बन्धी के बीच व्याप्तिसम्बन्ध होता है। उनके मतानुसार तदुत्पत्ति और तादात्म्य ये दो ही सम्बन्ध व्याप्ति के नियामक हैं। अन्य शब्दों में जितनी व्याप्तियाँ हैं वे सबका इन दो सम्बन्धों में पर्यवसान होता है। धुआँ और अग्नि के बीच व्याप्तिसम्बन्ध है क्योंकि उन दोनों के बीच कार्यकारणभाव है। वृक्षत्व और आम्रत्व के बीच व्याप्तिसम्बन्ध है क्योंकि उन दोनों के बीच स्वभावसम्बन्ध-तादात्म्यसम्बन्ध है। जैन तार्किकों के मतानुसार व्याप्ति को तादात्म्य और तदुत्पत्ति में सीमित करने की अपेक्षा इतना कहना ही पर्याप्त है कि साध्य-साधन दोनों के बीच अविनाभावसम्बन्ध है। यदि व्याप्ति को तादात्म्य और तदुत्पत्ति में सीमित किया जाय तो कार्यहेतु और स्वभावहेतु इन दो ही प्रकार के हेतु संभवित होंगे; परन्तु विचार करने पर स्पष्ट ज्ञात होता है कि कार्यहेतु और स्वभावहेतु के अतिरिक्त और भी अनेक हेतु हैं। कृत्तिकोदय से अतीत भरण्युदय का अनुमान तथा भविष्यत् शकटोदय का अनुमान होता है, किन्तु इनके बीच तादात्म्य या तदुत्पत्ति सम्बन्ध नहीं है। नोंध करनी चाहिए कि जैन तार्किक तादात्म्य और तदुत्पत्ति इन दो सम्बन्धों के अतिरिक्त जिन सम्बन्धों में अविनाभाव देखते हैं उन सम्बन्धों के मूल में वास्तव में कार्यकारणभाव (तदुत्पत्तिसम्बन्ध) होता है यह सत्य सूक्ष्म विश्लेषण से प्रकट होगा। __ अनुमान के प्रकार - बौद्ध तार्किकों और नैयायिकों के समान जैन तार्किक भी अनुमान के स्वार्थानुमान और परार्थानुमान जैसे दो प्रकारों का स्वीकार करते हैं। स्वप्रयोजन और परप्रयोजन के आधार पर ये दो प्रकार होते हैं। स्वार्थानुमान अर्थात् 'अपने लिए अनुमान' । स्वार्थानुमान स्वप्रतिपत्ति के लिए है । वह मात्र अपने बोध या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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