Book Title: Jain Darshan me Shraddha Matigyan aur Kevalgyan ki Vibhavana
Author(s): Nagin J Shah
Publisher: Jagruti Dilip Sheth Dr

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Page 65
________________ 56 जैनदर्शन में सम्यग्दर्शन मतिज्ञान केवलज्ञान है ? उसके पास उत्कृष्ट केवलज्ञान तो था ही। उसने उसी पर सर्वज्ञत्व का आरोप कर दिया। इस प्रकार केवलज्ञान स्वयं ही सर्वज्ञत्व में परिवर्तित हो गया। वीतरागता और धर्मज्ञता के विरुद्ध सर्वज्ञत्व की हानिकार प्रतिष्ठा का प्रतिकार पातंजल योग में योगभाष्यकार ने स्पष्टत: स्वीकार किया कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए वीतराग बनना ही आवश्यक है, सर्वज्ञ बनना आवश्यक नहीं है। वीतराग बने बिना मोक्ष नहीं मिलता, जब कि सर्वज्ञ बने बिना मोक्ष मिलता है। कतिपय जैन चिन्तकोंने बलपूर्वक प्रतिपादन किया कि मात्र आत्मा का ज्ञान ही केवलज्ञान है। उन्होंने सर्वज्ञ का अर्थ ही आत्मज्ञ किया। उन्होंने ऐसा भी कहा कि भगवान का सर्वज्ञत्व तो व्यवहार है जबकि उनका आत्मज्ञत्व ही परमार्थ है।। भारतीय धर्म-दर्शन की परम्पराओं में मोक्ष को ही परम पुरुषार्थ के रूप में स्वीकृत किया गया है। अत: यह जानना आवश्यक है कि मोक्षप्राप्ति के लिए कौन से क्रम से साधना करनी चाहिए यह कोई साक्षात् अनुभव से जानता है ? अन्य शब्दों में क्या कोई धर्म को साक्षात् जानता है ? मुमुक्षुओं के लिए यह प्रश्न विचारणीय है। मीमांसको का यह मत है कि कोई मनुष्य कभी भी धर्म का साक्षात्कार नहीं कर सकता, धर्म तो वेद द्वारा ही जाना जा सकता है, वेद अपौरुषेय है, धर्म के विषय में वेद का निर्बाध और अन्तिम अधिकार है। मीमांसक ने सर्वज्ञत्व का निषेध भी इसी कारण किया है। कोई मनुष्य सर्वज्ञ नहीं हो सकता क्योंकि किसी भी मनुष्य को धर्म का प्रत्यक्ष (साक्षात् अनुभवात्मक ज्ञान) सम्भव नहीं है। अत: कुमारिल कहते हैं - धर्मज्ञत्वनिषेधश्च केवलोऽत्रापि युज्यते । सर्वमन्यद्विजानंस्तु पुरुष: केन वार्यते ।। - तत्त्वसंग्रह पूर्वपक्ष' पृ. ८४४ वैदिक परम्परा में अन्य दार्शनिक चिन्तकोंने ईश्वर में नित्य सर्वज्ञता और अन्य योगीओं में योगज सर्वज्ञता मानकर भी वेदों को ईश्वरप्रतिपादित या ईश्वरनि:श्वसित कह कर धर्म में वेद का ही अंतिम अधिकार स्वीकार किया। इसके विपरीत, श्रमण परम्परा ने वीतरागी और तत्त्वज्ञानी मनुष्य का धर्म के विषय में प्रामाण्य स्वीकृत किया। मनुष्य स्वयं साधना करके पूर्ण वीतरागी और शुद्धज्ञानी बन सकता है और मोक्ष तथा मोक्षोपायों का साक्षातकार कर सकता है। उसे मोक्ष मार्ग का प्रत्यक्ष अनुभव है। वह स्वयं साक्षात् अनुभूत मोक्षमार्ग का, मोक्षोपायों का, अर्थात् धर्म का उपदेश देता है। धर्म का उपदेश देने में वही अधिकारी है। बौद्धाचार्य धर्मकीर्ति ने लिखा है कि बुद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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