Book Title: Jain Darshan me Shraddha Matigyan aur Kevalgyan ki Vibhavana
Author(s): Nagin J Shah
Publisher: Jagruti Dilip Sheth Dr

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Page 58
________________ 49 केवलज्ञान ही विपरीत सिद्ध करता है । जो द्रव्य या जो जाति के पदार्थ में परिमाण का तरतमभाव हमें दिखाई देता है वह द्रव्य या वह जाति का पदार्थ कभी भी परमहत्परिमाण को प्राप्त होता ही नहीं है। आँवला में तरतम परिमाण होता है लेकिन कोई भी आँवला परममहत्परिमाण प्राप्त नहीं करता । पौद्गलिक पदार्थ में तरतम परिमाण होता है, लेकिन कोई भी पौद्गलिक पदार्थ परममहत्परिमाण किसी भी काल में प्राप्त करता ही नहीं है। जैन मतानुसार आत्मा संकोचविकासशील होने से उसमें भी तरतम परिमाण है लेकिन किसी भी आत्मा को परममहत्परिमाण प्राप्त नहीं है । आकाश में परममहत्परिमाण है परन्तु वहाँ आकाश में पूर्व कभी भी परिमाण में तरतमभाव था ही नहीं, आकाश का परममहत्परिमाण तो अनादि है। इस प्रकार जहाँ परिमाण का तरतमभाव है वहाँ वह परिमाण कभी परममहत्परिमाण बनता ही नहीं है। अत: आत्मा में ज्ञान का तरतमभाव होने से ज्ञान आत्मा में अपनी परमोत्कृष्ट कोटि प्राप्त नहीं कर सकता, ऐसा फलित होता है । इस प्रकार आत्मा में सर्वज्ञत्व की सिद्धि करने दिया हुआ अनुमान विपरीत सिद्ध करता हुआ प्रतीत होता है। दूसरा, ज्ञान अल्पविषयग्राही, बहुविषयग्राही दिखाई देता है अत: वह सर्वविषयग्राही भी संभवित होता है और सर्वविषयग्राही ज्ञान ही अनंतज्ञान है ऐसा जैन मानते हैं, तो जैन ऊपर यह स्वीकार करने की आपत्ति आती है कि अल्पविषयसुख, बहुविषयसुख दिखाई देता है अत: सर्वविषयसुख संभवित होता ही है और सर्वविषयसुख ही अनंतसुख है। किन्तु जैन ऐसा तो नहीं मानते । इसके विपरीत उनके मतानुसार निर्विषयसुख ही अनंतसुख है। इन सब से प्रतीत होता है कि सर्वज्ञत्व को सिद्ध करने के लिए दिया गया यह प्रथम तर्क ग्राहय नहीं है। (२) जो अनुमेय होता हो वह प्रत्यक्ष होना ही चाहिए यह स्वीकार्य हो तो जो अनुमेय होता है वह किसी को तो प्रत्यक्ष होना ही चाहिए यह बात शायद स्वीकार्य बने, परन्तु जो जो अनुमेय होता हो वह प्रत्यक्ष होना ही चाहिए यही स्वीकार्य नहीं है। परमाणु को हम देख नहीं सकते, लेकिन उसका अनुमान कर सकते हैं, तर्क से उसकी स्थापना हो सकती है, यह तो सर्वसम्मत है। अत: दुसरा तर्क भी सर्वज्ञत्व को सिद्ध करने में समर्थ नहीं है। (३) भविष्य में कब चन्द्रग्रहण या सूर्यग्रहण होगा, उसका उपदेश सर्वज्ञत्व को सिद्ध नहीं कर सकता क्योंकि यह तो शुद्ध गाणितिक आधार पर असर्वज्ञ भी बता सकता है। अहमदाबाद से मुंबई का अन्तर ज्ञात हो और रेलगाड़ी की गति का ज्ञान हो तो अहमदाबाद से अभी छूटी हुई रेलगाड़ी कब मुंबई पहुँचेगी यह कोई भी व्यक्ति गिनती करके बता सकता है। उसी प्रकार जिसे चन्द्र, सूर्य, पृथ्वी आदि की गति का ज्ञान हो वह खगोलशास्त्री सरलता से गिनती द्वारा कह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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