Book Title: Jain Darshan me Shraddha Matigyan aur Kevalgyan ki Vibhavana
Author(s): Nagin J Shah
Publisher: Jagruti Dilip Sheth Dr

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Page 44
________________ 35 जैनदर्शन में मतिज्ञान व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह का सही अर्थघटन ____ व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह - इन्द्रियप्रत्यक्ष रूप मतिज्ञान की प्रथम भूमिका अवग्रह की भी दो अवान्तर भूमिकाएँ दी गई हैं। इन में प्रथम व्यंजनावग्रहकी भूमिका है और द्वितीय अर्थावग्रह की भूमिका । व्यंजनावग्रह अर्थात् व्यंजन का अवग्रह ।20 जैन यहाँ व्यंजन का अर्थ इन्द्रिय का विषय के साथ संयोग अर्थात् इन्द्रियार्थसन्निकर्ष करते हैं। टीकाकार सिद्धसेनगणि लिखते हैं : तत् पुनः व्यञ्जनं संश्लेषरूपं यदिन्द्रियाणां स्पर्शनादीनामुपकरणाख्यानां स्पर्शाद्याकारेण परिणतानां च य: परस्परं संश्लेष: तद् व्यञ्जनम् । (१-१८) संस्कृत भाषा की यह विशेषता है कि किसी भी शब्द में से उसकी विविधव्युत्पत्तिक्षमता के कारण जिसे जो अर्थ चाहिए वह उस अर्थ नीकाल सकता है - चाहे वह अर्थ शब्दकोश में मिलता ही न हो। इसी कारण एक ही श्लोक के सौ अर्थ देनेवाले शतार्थी जैसे ग्रन्थों की संस्कृत में रचना हुई है। जैन चिन्तकोंने संस्कृत भाषा की इस विशेषता का अनुचित लाभ ऊठा कर 'व्यंजन' शब्द का अर्थ 'इन्द्रियार्थसन्निकर्ष' किया है। व्यंजनावग्रह में इन्द्रियार्थसन्निकर्ष का ही ग्रहण होता है। पश्चात् इन्द्रिय के साथ सम्बद्ध अर्थ-वस्तु का सामान्यत: ग्रहण होता है। यह अर्थावग्रह है। 'अर्थ' शब्द का अर्थ यहाँ 'वस्तु' किया गया है।21 जो इन्द्रिय के सम्बन्ध में सन्निकर्ष सम्भवित नहीं है वहाँ सीधा ही अर्थावग्रह होता है। 'व्यंजन' शब्द का अर्थ 'इन्द्रियार्थसन्निकर्ष' करना विचित्र सा लगता है। यहाँ व्यंजन का प्रचलित अर्थ छोड कर इस प्रकार अर्थ करना यह सूचित करता है कि जैन चिन्तक कोई प्राचीन स्वाभाविक मूल अर्थ के उपर काल्पनिक नया अर्थ थोप रहे हैं। 'व्यंजन' शब्द का प्रचलित अर्थ है शब्द । प्रथम शब्द का ग्रहण होता है और पश्चात् शब्दार्थ का ग्रहण होता है। यह दिखाता है कि अर्थावग्रह' शब्दगत 'अर्थ' शब्द का अर्थ वस्तु नहीं है, अपितु शब्दार्थ (meaning) है। शब्दग्रहण की प्रक्रिया दीर्घ है। शब्द अनेक अक्षरों से बना होता है। अक्षर तो उच्चारण के साथ ही नष्ट हो जाता है। यदि शब्दस्थ सभी अक्षर एकसाथ गृहीत नहीं हो सकते तो शब्द का ग्रहण कैसे होगा ? इस प्रश्न के समाधान के हेतु भारतीय चिन्तकों को शब्दग्रहण की सुदीर्घ प्रक्रिया समझानी पड़ी है जिसकी चर्चा यहाँ प्रस्तुत नहीं है। शब्दग्रहण के पश्चात् शब्दार्थग्रहण की भी प्रक्रिया समझाने में आती है। शब्द के ग्रहण के बाद संकेत का स्मरण होता है और पश्चात् शब्दार्थ का ग्रहण होता है। शब्दार्थग्रहण के पश्चात् वाक्यार्थ के ग्रहण की विशेष प्रक्रिया है। शब्दार्थग्रहण और वाक्यार्थग्रहण दोनों अर्थावग्रह में समाविष्ट हैं। इस प्रकार मनन जिसका आधार ले कर आगे बढ़ता है वह मूल आधार व्यंजनावग्रह है और पश्चात् अर्थावग्रह से स्वयं मनन की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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