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92-144
अध्याय – 3 भय संज्ञा 1. भय का स्वरूप और लक्षण 2. भय के कारण और भय के दुष्परिणाम 3. भय के प्रकार 4. सप्तविध भय की अवधारणा और उसका विश्लेषण 5. आधुनिक मनोविज्ञान में भय की अवधारणा और उसकी जैन दर्शन में तुलना 6. भय मुक्ति और अभय की साधना 7. वैश्विक शस्त्रों की दौड़ का कारण भय 8. अभय और विश्वशांति
145-230
अध्याय – 4 मैथुन संज्ञा
1. कामवासना का स्वरूप और लक्षण 2. कामवासना के प्रकार 3. जैनदर्शन की वेद (कामवासना) और लिंग (शारीरिक संरचना) की अवधारणा 4. जैनदर्शन की मैथुन संज्ञा की फ्रायड के लिबिडो से तुलना एवं समीक्षा 5. कामवासना के दमन एवं निरसन के संबंध में जैन दृष्टिकोण 6. व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास और कामवासना 7. वासना-जय की प्रक्रिया और ब्रह्मचर्य की साधना
231-290
अध्याय - 5 परिग्रह संज्ञा
1. परिग्रह का स्वरूप एवं लक्षण 2. जैन दर्शन में परिग्रह के प्रकार 3. परिग्रह या संचयवृत्ति के दुष्परिणाम 4. जैन दर्शन में परिग्रह वृत्ति के नियंत्रण के उपाय - परिग्रह परिमाण व्रत 5. परिग्रह वृत्ति के विजय के संबंध में गांधीजी का ट्रस्टीशिप का सिद्धांत 6. धन अर्जन की वृत्ति एवं धनसंचय की वृत्ति में अंतर 7. ममत्ववृत्ति का त्याग एवं समत्ववृत्ति का विकास
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