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है। उनका वात्सल्यभाव एवं असीम आत्मीयता मेरे जीवन का गौरव है जो आजीवन बना रहे, यही गुरूदेव से प्रार्थना है
संस्कृतभाषा एवं न्याय के प्रकाण्ड विद्वान डॉ. बलराम गुरूजी (नेपाल) जिन्होंने मुझे संस्कृत और न्याय की शिक्षा दी और उन सभी गुरूजन एवं शिक्षकगणों को जिन्होंने मुझे ज्ञानार्जन हेतु हमेशा प्रेरित और प्रोत्साहित किया। उन सबके प्रति भी अपना आभार प्रकट करती हूं।
वैसे तो शाजापुर मेरा मूल वतन है, यहाँ के सभी स्वजन-परिजन मेरे अपने है, फिर भी 'शाजापुर श्रीसंघ' के सदस्यों की आत्मीय स्मृतियाँ इस श्रुतसाधना में सहयोगी रही।
"मध्यप्रदेश की काशी' के नाम से प्रसिद्ध, प्राकृतिक सौंदर्य के मध्य स्थित सुरम्य ‘प्राच्य विद्यापीठ' का विशाल पुस्तकालय एवं सुविधाएँ युक्त शान्त वातावरण, इस लक्ष्य की प्राप्ति में सर्वाधिक सहायक सिद्ध हुआ है।
इस शोध-सामग्री को कम्प्यूटराइज़्ड करने में राजा जी'.ग्राफिक्स, शाजापुर के श्री शिरीष सोनी एवं प्रूफ-संशोधन में श्री चैतन्यकुमार जी सोनी शाजापुर का विशिष्ट सहयोग रहा है। प्राच्य विद्यापीठ में कार्यरत् विद्वद्वर्य राम जी एवं प्रवीण जी शर्मा का सहयोग भी अनुमोदनीय रहा एतदर्थ उनके प्रति भी मैं अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती हूं।
इसके अतिरिक्त प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस शोध प्रबंध के प्रणयन् में जो भी सहयोगी बने, उन सबके प्रति मैं अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती हूं।
इस सम्पूर्ण शोध प्रबंध में अज्ञान एवं प्रमादवश त्रुटियाँ रहना स्वाभाविक है। अतः प्रबुद्ध पाठक अपने सुझाव एवं मंतव्य प्रस्तुत करने हेतु सादर आमंत्रित हैं। अन्त में शास्त्र विरूद्ध कुछ भी लिखा गया हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूं.
- मिच्छामि दुक्कडं।
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