Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 8
________________ ऐसी यह जिन वानी है, भव भव में यह मुखानी है सारे जगत के जीवों ने तकरीर याको मानी है। अन्य मरा की बातों पे प्यारे ना जाइयो । भगा | (दोहा ) नैय्यायक मीमांसक, बौद्ध शैव जो होय । स्थाद्वाद के सामने, ठहर सके ना कोय । षट मत में सार है, सबकी हितकार है शिवपद दातार है, न्यामत बलिहार है ,, चों में माता के सरको झुकाइयो । भग० ॥२॥ (चोल ) चौपाई १६ मात्रा ( चोवीस जिनेन्द्र स्तुति) बंदू पंच परम पद दानी । वंदू मात श्रीजिन वानी ॥ बंदू जिन मारग मुख रूपा । जिन प्रतिमा जिन भवन अनूपा ॥१॥ यह नव पद बंदू शिर नाई। __ मंगलीक भव भव सुखदाई ॥ जय श्रीऋषभ सुनाभ कुमारा। तारण तरण भवदधी पारा ॥२॥ जय श्रीअजित अजित पद धारी। तोड़ा फर्म कुलाचल भारी॥

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