Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 49
________________ (राग) वाली तुमसे ५० व ) का ४५ हो नहीं सकता । कहीं रूहे मुकद्दस कही हिन्दू का मन मैं • कही वेदोका पति हूँ की उस्ताद कुरो हु । कहीं ही धर्म हिन्दू का की मुलईमां हूँ ॥ २॥ } न कुछ है इनदा मेरी न कुछ है इन्तहा मेरी । इलाजे दर्द दिल ( राग ) काली ( ताल : तुम से कभी मशरक में जादि न मिट्टी से हुआ पैदा न मिट्टी में मिलूंगा फिर । कभी मैं मा तावह कभी महरे दरखुराा हूं ॥ ३ ॥ कधी एक मान्सा है मैं | में कफ कुलमां है ॥ श आत्मा अय कसरी जिसकी नही मत्यु : वातिन रे कामिह बाद एक इन्सां है ॥ ५ ॥ नहीं इतनी ख़बर मुझको भी गवि में पिनां हूं ॥२॥ घर हवा (नाल ) इर्द दिल हो सकता ॥ मैं हूँ कही हूं यात्मा देखो कहीं रूहे जहां मैं हूँ ॥ मैं हूँ । १ ॥

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