Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 60
________________ राम जैसा न गम्भीर आज्ञाकार लछमन सा, खुशी गम सब बरावर हो मेरा ऐला जिगर करदे ॥६॥ मेरे दिल में तमरना हो न दोलन की न हशमत की, शवे तारीक पापों की हटाकर के सहर करदे ॥७॥ हो केवल ज्ञान पैदा एक दिन हृदय में न्यामत के, वीतरागी दशा करके हमेशा को अमर अग्दे ॥८॥ (राग ) कवाली ( नाल ) कहरवा ( चाल ) इलाजे दर्द दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता। वह कब आएगा दिन जिस दिन करूं श्रद्धान श्रीजिनका गुरू का तत्वका निज धात्मा का जैन शासन का ॥१॥ किसी को देख कर दुखिया हो करुणा रस का पल ऐसा घराथा जिस तरह विष्णुकुमार श्राकार वामन का ॥२॥ राम जैसी हो गर गम्भीरता पैदा मेरे मन में तो शाज्ञाकार दिल ऐसा बने जैसा था तछमन का ॥३॥ नज़र जाये नही हरगिज़ कभी गैरों के ऐषों पर, ऐष पोशीकी आदत हो ख़याल पाये न अवगुण का ॥४॥ राग अरु ष का विसाकुल भाष जाला रहे दिल से, नज़र आने लगे नकशा बराबर यार दुश्मन का ॥५॥

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