Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 61
________________ न हो पैदा ख़याल हरगिज़ मुझे दुनिया की वातों का, वहां घूमे सर मेरा जिसजा हो चरचा जैन शासन का ॥६॥ न कानों में पड़े वात इश्किया किस्से कहानी की, मुन् मैं रात दिन चारित्र परमो वीर पुरुपन का ॥७॥ बुराई के लिये हो जाय बंद इकदम जुबां मेरी, वहां खोलू जुयां जिस नापे निर्णय होय नत्वन का ||८|| मुखी परजा रहे न्यामत पिजय हो जार्ज पंजम की, दूर दुनिया से हो सब रंगोगम, हो अन्त दुश्मन का ॥९॥ * इति श्री जैन भजन रत्नावली * (न्यामत विलास अङ्क २ ) समाप्तम् , पुस्तक मिलने का पना:Niamat Singh Jain Secretary District Board HISSAR (Dist.) Punjab.

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