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THE FREE INDOLOGICAL
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-The TFIC Team.
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DESCR
Niamat Singh Jain Tract Series-No. 2
न्यामतसिंह रचित जैन ग्रन्थमाला भइ २ ।
(NIAMAT BILAS, No. 2. )
भीमस्टर
REASONS
प्रणेतान्यामतसिंह जैनी सेक्रेटरी डिस्ट्रिक्ट बोर्ड, हिसार । श्री वीर निर्वाण सम्बत् २४४५
[ मूल्य 1)
प्रथमावृत्ति २०००] सन् १६१८ सर्वाधिकार प्रन्थ रचयिता ने स्वाधीन क्या है ।
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जैन भजन रत्नावली
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न्यामतसिंह रचित जैन ग्रन्थ माला-अङ्क२ ___(न्यामत विलास-२)
*>>otock*4 41 र जैन भजनरत्नावली
(चाल)-अडिल छंद॥ विमल बोष दातार जगत हितकार हो। मंगल रूप अनूप परम सुखकार हो । अश्वसेन कुल चंपाचे हृदय वसो । न्यामत का अज्ञान विघ्न संशय नसो ॥१॥
(राग) कवाली (नाल ) कहरवा (चाल ) कत्ल मत करना
मुझे तेगो नबर से देखना ॥ अपनी गफलत से जिया तू आप दुखयारों में हैं। जैसे मकड़ी कैद अपने जाल के तारों में है।॥१॥
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सच्चिदानंद रूप अपना तो कभी देखा नहीं । हैफ झूठी मूरतों के तू खरीदारी में है ।। २ ॥ 'इनदिनों के भोग दुरूदाई तुझे मार पसंद । , जिसके कारण देख तू दुनिया के वीवारों में है ॥ ३ ॥ मनुष भष जिनराम शासन जैन बुल तुझको मिला। न्याय भगवे मिजावल मर तू होसियारी में है ॥१॥
(राम) इनसभा (ताल) दादरा (सात) थर से यहाँ कौन
सुपा लिये माया मुझको। शाग्छ मुद्रा का प्रयू दर्श दिखादो मुझको। कैद दुनिया से दया करके छुड़ा दो मुझको ॥१॥ साख अनादि से भई गति में भ्रमलाई में। मोष मारग में प्रथू एक्लो लगायो हकको ॥२॥ यह करम वैरी भयोथन में सलाते हैं मुभो। धर्म को काटके शिवपुर में पहुंचादो शुभो ॥३॥ मोह सागर में पड़ी धानके नैय्या मेरी। भाप हितकारी हैं हिल करके लंघा दो शुगको ॥४॥ जब तलक मुक्ति न हो अर्ज पही यामत की। दर्श अपना प्रभू भय अंध में दिखादो मुझको ॥५॥
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३
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(च) संकीर्ण भैरवी ( तात) हा (बाघ) सोरठिया या बोली जी सर दे डाल मीर ।
कब आवेगी ना जाने म्हारी अधी काल ( टेक )
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मैं निनोद चलकर भाषा नस बाबर में भरवाया । भवदवि में गोता खाया भी हो करके बेहाल ॥ १ ॥ कहीं नर्क पशु गति पाई कहीं लई स्वर्ग गति नाई । पर समकित कहीं नहीं आई जी कर्मन के मंगात ॥२॥ जब भटक भटक में हारो. नव दुर्लभ नर भद बारो । यहां भी नहीं कारण सारो जी मैं फंसा मोह के बाल ॥३॥ भव भव में जो दुख पायो, नहीं सुख में जाय सुनायो । अब शिव मारन दर्शादो जी, तुम दीन दया ॥४॥ तुब सुखकारी हितकारी, सप बीएन सुख परिहारी । अब लीनी शरण तिहारी की, व्यामत को दुरु मल ॥५॥
(राग) नाटक छाया लगत भैग्दी ( तास कहरी ) भगवत की बानी पे श्रद्धान बायो तिहुं जग का भान है, सच्चा मुहान है । केवल प्रमान है, सब से महान है || भगवत की ० ॥ टेक ॥
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ऐसी यह जिन वानी है, भव भव में यह मुखानी है सारे जगत के जीवों ने तकरीर याको मानी है। अन्य मरा की बातों पे प्यारे ना जाइयो । भगा | (दोहा ) नैय्यायक मीमांसक, बौद्ध शैव जो होय ।
स्थाद्वाद के सामने, ठहर सके ना कोय । षट मत में सार है, सबकी हितकार है शिवपद दातार है, न्यामत बलिहार है ,, चों में माता के सरको झुकाइयो । भग० ॥२॥
(चोल ) चौपाई १६ मात्रा ( चोवीस जिनेन्द्र स्तुति) बंदू पंच परम पद दानी । वंदू मात श्रीजिन वानी ॥ बंदू जिन मारग मुख रूपा ।
जिन प्रतिमा जिन भवन अनूपा ॥१॥ यह नव पद बंदू शिर नाई।
__ मंगलीक भव भव सुखदाई ॥ जय श्रीऋषभ सुनाभ कुमारा।
तारण तरण भवदधी पारा ॥२॥ जय श्रीअजित अजित पद धारी।
तोड़ा फर्म कुलाचल भारी॥
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जय शंभव स्वयंभू भगवाना। . अतुल शक्ति दर्शन मुखझाना ॥३॥ जय अभिनंदन अभय पद दाता ।
तिलक त्रिलोक नाथ जग त्राता। जय श्री सुमति सुमति परकाशी।
ज्योति स्वरूप भलख भविनाशी ॥४॥ जय श्री पदम पदम पद सोहै।
देखत त्रिभुवन जन मन मोहै ।। जय सुपार्श्व तुम शिवार राई ।
अक्षय ऋद्धि अक्षय पद दाई ।।५।। जय श्रीचंदसेन नृप नंदा ॥
चित चकोर तुम चर्णन चदा।। जय श्री. पुष्पदंत भगवंसा ।
ले छियालीस भये भगवंता ॥१॥ जय शीतल शीतल गुपधारी।
क्रोध मोह मद लोभ निवारी ॥ जय श्रेयांस मिथ्यात पिनाशी।
द्वादशांग वाणी परकाशी ||७|| जय श्री वासुपूज्य जग ईशा ।
सेवें पद सुर ईश मुनीशा ॥
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जय श्री विमल विमल करतारा ।
अष्ट करय कल मल हरतारा ॥८॥ जम अनंत भगवंत जिनेशा।
परम ब्रह्म ईश्वर परमेशा ।। जय श्री धर्म धर्म अनुरागी ।
केवल धान कला उर जागी ॥॥ जय श्री शान्त अतिशान्त स्वरूपी ।
एक रूप का रूप अरूपी ॥ जय श्री कुंथ कंथ शिवरानी ।
तीन जगत पति पत जिन बानी ॥१०॥ जय अरह अरिदल राव कारी।
तारन भनुरागी सागारी॥ जय श्रीमल करन मुख काजा ।
2 श्रीकर भीधर श्री जिन राजा ॥१॥ जय श्री मुनि सुबन जिन राई।
अव्रत नाशक सुव्रत दाई ।। जय नमिनाथ नाथ संसारी।
" लोकालोक विलोक आंवकारी ॥१२॥ जय श्रीनेम हरी कुल भूषण ।
. जीवन मुक्ति विगत सब दूषण ॥
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• जय पारश सुन अही नवकारा।
अमरपुरी धनपति पद धारार ॥१३॥ जय जय जय जय श्री महावीरा ।
वर्द्धमान सन्मत भतिवीरा ॥ जपो ही न्यायमत मुखकारा ।
गर्मित चौवीसों अवतारा ॥१४॥
(चाल) कवालो (ताल कहरवा) है वहारेबागदुनिया चंदरोज । यक ववक उलटा जमाना होगया।
कैसा कलयुग का वाना हो गया॥१॥ पहिले होता था जवानीमें व्याह।
ढंग यह क्योंकर रवाना हो गया ॥२॥ बचपन में शांदियां मेने लगी।
___ हाय क्या उल्टा जमाना हो गया ॥३॥ रहम बच्चोंपे कोई करता नहीं।
जुल्मका दिल में ठिकाना हो गया ॥४॥ लाखों बच्चे रोता दिन मरने लगे।
न्यायमत गमका फिसाना हो गया ॥५॥
(चाल) कबाली (ताल कहरवा) अदमसे जानिये इस्ती तलाशे यार मभाए ॥
नोट-यह भजन जनाब नवार लेफटीनेंट गवर्नर
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बहादुर पंजावकी तशरीफ यापरी बमुकाम रिसार बनाया गया था और सन् १९१५ में सुनाया गया था।
खुशी का मान क्यों सामान सारा होता जाता है। यह क्यों रशके चमन खाना हमारा होता जाता है ॥१॥ हमारे लाट साहेब आज यहां तशरीफ़ लाये हैं।। गोया इकवाल का रोशन मिनारा होता जाता है ॥२॥ मुवारक आजका दिन है सुती क्यों कर न होवें हम । हमारे पे इनायत का इशारा होता जाता है ॥३॥ फुवे हो राज दृटिश को मिले दुनिया की सब न्यामत । गैब से भव तो नुसरत का इशारा होता जाता है ॥४॥
(चाल) चौपाई १५ मात्रा भादि पुरुष आदीश जिनेश, जग नायक जग बद्रे महेश। आदि सुविषि सबको बतलाय, पूजू ऋषभदेव सर नाय॥१ प्रष्ट करमके जीतनहार, मग उद्धार लिया अववार । मोह जाल जिनदीनों तोड़, पूर्ण अजित नाथकरजोड़॥२॥ बरसे रतन पांच दश मास, गर्भ माहीं कीनों जिनवास। सोलह स्वप्न लखे जिन मात, मैं पूजू शंभू'हर्षात ॥३॥ उठ परभात पती पूछियो, राजा अर्द्ध सिंघासन दियो। स्वपनोंका फल करत उचार, अभिनंदनपूजू अवतार ॥४॥
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छप्पनदेवी इन्द्र पठाय, माना सेव करें अधिकाय । दर्पण विंव ऐसे जिन रहे, श्री मुमत पूजत मुखलहे ॥५॥ सकुट झुका सुरपति तत्कार, घरे सब वाजे इक पार । इन्द्र लखो तब अवधि विचार, पद्मप्रभू लीनों अवतार ॥६॥ हुक्म दियो धनपति उस घड़ी ऐरावत गजमाया करी ।। सब सुर देवी कर सिंगार, श्री सुपार्श्व पाए दर ॥७॥ चंद्र सूर्य सवही मिलाय, भवनपतो आए सर नाय || न्यंतर खगपति श्रानंद भरे, चंद्र प्रभू के दर्शन करे ॥८॥ भा परस्त सचीजिन लियो, माषा मयी बालक रच दियौं। माया नींद रची जिन मात, वंदे पुप्पदंत हरपात ॥९॥ सौंपे हाय पती के आय, लोधन सहससो इंद्र बनाय । रूपदेस तिरपत नहीं भयो, श्री शीतलचर्णनको नयो।१०॥ मेरुजाय सुर हुकम सुनाय, चोरोदधि कलशे भरलाय । सहस अठोसर कलश सँवार, श्री श्रेयांसशीस पर ढारा११॥ इन्द्र सची सव सुर हर्षाय, लये गंधोदक शोस चढ़ाय । नाना विधिकर जिन शृंगार. पूने वासपूज्य पद सारा॥१२॥ इन्द्राणि माता पे गई, देख जगत गुरू आनंद भई। । तिहुं जग तिलकर जो सियो,मानोविमलर पद लियो॥१॥ इन्द्र रचो नाठक तव पाय, श्री जिनके दश भव दर्शाय। शक्ति अनंतर खरूप, धन्य अमंत नाथ जग भूप ॥१४॥
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१०.
मति श्रुति अवधि ज्ञान भरपूर, महासुभग मूरति महासुर । मल मूत्रादि रहित शरीर, धर्मनाथ पूजूं घरोर ॥ १५ ॥ जो मन में बैराग विचार, मारह भवन भाई सार | संगोगे लोकांतिक माय, शांतभये धर्णन सरनाय ॥ १६॥ आपा परको कियो विचार, आतम रूप बखो जिनसार । तन धन यौवन थिर नहीं जान, कुंब नाथ पायो विज्ञान | १७ ॥ तपकर कर्म जलाये सभी, केवल ज्ञान उपायो तभी ।
'समवशरण सुररचना करी, अर्हनाथ मुखवारणी खिरी ॥१- १ सात तत्व उपदेश जो करो, स्याद्वाद कर संशय हरो । मिथ्यामत खंडेइकवार, मल्लनाथ जिनमत विस्तार || १६ | दो विध धर्मको जिनराज, हर्षलहो सुन सकल समाज । गाय सिंह बैठे एक ठौर, भुमि सुव्रत बंद कर जोड़ ||२०| तारण तरन जगतमें सही, कुमत हटाय सुमति मति दई । जगवंदू तुम दीनदयाल, नमूं नमी श्री जिन तिहुं काल ||२१ हरता करता आपही जीव, स्वयं सिद्ध यह लोक सदीबा ऐसा बतलायो जिन राज, वंदू नेम नाथ महाराज ॥ २२ ॥ नाग नागनी जलत उभार, अंतसमय दीनों नवकार | सुर पदवीधारी छिन माय. चंदू पार्श्वनाथ चितलाय ॥ २३॥ कातक सुदीचौदश की रात, मावसकी जानों परभात । चित्रानक्षत्र लियो निर्वाण, वंदू महावीर भगवान ॥ २४ ॥
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दोहा-पंच कल्याणक पाठयह, न्यामत रचो संवार । संवत् विक्रम दोसहस, छियालीस देवो निकार ॥२५॥
(चाल) कपाली (ताल कहरवा) कत्ल मत करना मुझे
तेगो तघर से देखना जैनमत जब से घटा मरस ज़माना हो गया । यानि सच्चा शान सब एक दम रवाना हो गया ॥१॥ गम्त फहमी झूठ लाइल्मी गई हद से गुज़र । सब अगर पूछो तो सर उलटा जमाना हो गया ॥२॥ जाते पाक ईश्वर को करता हरसा दुनियाका करें। ' हाय भारत भाजकल विलकुल 'दिवाना हो गया ॥३॥ अर्मफल दाता भी कोई और है कहने लगे। कैसी उल्टी बात का दिल में ठिकाना हो गयो ॥४॥ कोई कोई जीवकी हस्ती से गो मुनकिर हुए। कैसा यह प्रज्ञान का दिल दे निशाना हो गया। जैन मत प्रचार हटने का नतीजा देख लो। रहम उन्फत छोड़ कर हिंसक जमाना हो गया ॥६॥ झूठ चोरी और दगादाजी कहाँ तक बढ़ गई। पाप करते श्राप कलयुग का बहाना हो गया ॥७॥
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१२
बुग्न कीना फूट घर घर में नज़र आने लगे । बात्सल्य जाता रहा अपना विगाना हो गया ॥ ८ ॥ न्यायमत अब तो जैन मत की इशात कीजिये | | सोते सोते मोह निद्रा में जुमाना हो गया ॥ ६॥
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(चाल) कुवाली (ताल कहरवा ) अदम से जानिये हस्ती, तलाशे यार में आए
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नोट- यह गजुल अज़ीज वीरचंद्र सुपुत्र लाला फतेचंद जैन रईस हिसार के लिये बनाई गई जो उस ने देहली में अपनी शादी में माह भार्च सन् १६१६ में पढ़ो थो ॥
मुबारक आज का दिन है, मुबारक हो मुवारक हो । सदाएं आ रहीं हैं-दिन मुबारकहो मुवारक हो ॥ १ ॥ स्टेशन शहर देहली पर खुशीसे जव वरात आई । दो जानिव से निशात आई, मुबारक हो मुबारक हो ||२|| फलक पे रक्स जोहरा कर रही है, देख शादी को । सुबां से कह रही है दमदम शादी मुबारक हो ॥ ३ ॥ लगी थी जो तमन्ना सब के दिल में एक मुद्दत से ख़ुशी से आज बर आई, मुबारक हो मुवारक हो ॥ ४ ॥
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विदा होते हैं अब हम पर इनायन की नजर रखना । खुशो का ऐसा दिन सब को मुवार कहो मुबारक हो ॥शा श्रीजिनराज का धनबाद न्पामत क्यों न गावें हम । खुशी से होगई शादो, मुबारक हो मुबारक हो ॥ ६ ॥
१२ (चालकवाली [ताल कहरवा ] यह कैसे वान विखरे हैं यह
___ व्यासूरत घनी गमकी ॥ नोट-भरत जी का श्री रामचन्द्र जी से मिलना और
राज्य सौंपना ॥ भजुध्या में श्री रघुवर, नेरी पाना मुबारक हो । भाई लछमन का सीताका संग लाना मुबारक हो ॥२॥ अजुध्या की सकल परजा, तेरा धनवाद गाती है।
आपके सार चरणों का दरश पाना मुबारक हो ॥२॥ पिता का हुक्म माता का, बचन पूरा किया तुमने। जीत लंकेश रावनको, तेरा आना मुबारक हो ॥३॥ भजुध्या का राज लीजे, और शाही ताज लीजे । मुक्कदोशी मुझे दीने, नेरा आना मुबारक हो ॥ ४॥ सकल परणा यही अब कह रही है यक जुबां न्यामत । मुबारक हो मुबारक हो, तेरा वाना मुबारक हो ॥ ५॥
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[चा-] माझी [ साल पारपा] कट मत करना मुझे
खेगारावर से देखना नोट--जिस समय लक्ष्मणणी फे शक्ति लगी उस समय
हनुमान आदि सष सरदारों ने रामचन्द्र जी से कहा कि महाराज शोक को निवारिये और युद्ध का इना पाम बीजिये इस समय रोना उचित नहीं है पर सात सुन कर श्रीरामचन्द्रभी ने यह जवाव दिवाःमें भी रोखा जुध्या का शक जाता रहा। मैं नहीं रोल गर सरका साथ जाता हो ॥ १ ॥ पन में पाने का भी है कुछ रंगो गय मुझको नही। गम नहीं है ऐश का सामान गर जाता रहा ॥ २॥ गय नहीं सुझको अगर सीता ससी जाती रही। । गर मेगा साग सिसारा सा लखन जाता रहा ॥३॥ रंज भरतो झुझे हां रंग है इस पातका । कौरस झूठा होगया मेरा पर जाता रहा ॥४॥ किस तरह इंगा बिभीषण को भला लंका का रान। जिस भरोसे पर कहाथा आज बह जाता रहा ॥५॥
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[चास-] नाटक [लान कटा ] नोट-गम का लकपन को सीता की तलाश करने का
हुक्म देना। देखो लछमन पर उघर फर लेकर तीर मान नंगा देखो-दरिया देखो-देखो भूम यमान । मिर कंदर के अन्दर बाहर-जहां कहीं मिले निशान । मेरो हात-है बेहाल-जी निहालइसकाल-पर खयाल । देखो बालमन० ॥ मन्दी गमन करो-देरी नहीं करो। मेरे मन का गम हरो-कमें धनुष परीकरके ध्यान ॥ देवो लछमन ॥
[चाल] नाटक [तान कहरवा मेगी मानो तो मानों क्या डर है
नोट - लक्ष्यण का वर दूपन मे लड़ने के लिये रामचंद्र जी से आगा मांगना । मुझे गानेदो भाई क्या डर है, तुम्हें काहेका पता फिकर है ले धनुषवाण आता है, इन को गिरा आता है, अभीमा, बा दिला, काम पनाले जल्दी शा। दिल में न कोई फिकर है, तु काहे का एता फिकर है।
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[चाल] नाटक [नाल कहरवा ] मेरी मोनो जी मानो क्या डर है नोट-हन्यानजी का मुद्रिका लेकर सीताजीके पास जाना धारो धारो जी धीरज क्या डर है,
तुम्हें काहे का दिल में फिकर है। सीता के पास जाता हूं, मुद्री को दिये आता हूं। वहां पे ना वल दिखा, काम बना के जल्दी प्रा। लादूंगा जैसी खवर है,
____ मेरे दिल में न कोई खतरहै।धारो०१॥
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[चाल ] नाटक [ताल-कहरवा ] अलबेला छैला ऐसा
लागे नई शान का ॥ नोट-सीताजी का रावण को जवाब देना मुन पापी रावण, हाथ ना लाना मैं सती हूं। कुछ ज्ञानकर,विज्ञान कर,टुक ध्यानकर। सुन०॥ क्यों ना वीच स्वयम्वर आया, वतला तो सही ॥ क्यों ना सांगर धनुष चढ़ाया, बतलातो सही। का ना भुजबल वहां दिखलाया, बतला तो सही। क्या पता तुझे नहीं पाया, पतलातो सही । यही चतुराई--यही ठकुराई ॥
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भरे कलह बढाने वाले, परे हट हट हट अरे शील डिगाने वाले परे हट हट हट अरे सती चुराने वाले, परे हट हट हट भाई को हटाने वाले, परे हट हट हट कहां सुत भाई-कुमत उर छाई न्यामत कुमति इटावो ।। कुछ शान कर, विज्ञान कर, टुक ध्यान कर ॥१॥
(चाल) नाटक भैरवी (ताल कहरवा ) शरण धरम की लेले चेतन भटक भटक गया हार । कोई कोई विन धरम नहीं हितकार। उत्तर दक्खन पूरव पच्छम इंडा सभी संसार । पाली-यहही-है दुःखों का मोचन हार । शरण ॥
(चौपाई) लाख उपाय करो नर नारी। .
विधना लेख टरे नहीं टारी ॥ स्वारथ के मृत पितु महतारी ।
यह हमने निश्चय कर धारी।
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चपला नाम सिंघ दुखदाई।
___ जल बन शैल अगन के माहीं॥ काम न आवे बंधु भाई।
होता है इक धर्म सहाई ।। धर्म है मार, मुखकरता, दुख हरतार, मददगार। न्यामत तुझे आधार, करताकरता है यह पतितनका उसार ॥ शरण० ॥१॥
(चाल) कवालो (ताल-कहरवा) करल मत करना मुझे तेगो
__ नवर देखना जुल्म करना छोड्दो साहेव खुदा के वास्ते ।
जुल्म अच्छा है नहीं करना किसी के वास्ते ॥ १ ॥ रहम कर गौवों पै बस मत जुल्म पर बांधो कमर ।. क्यों सताते हो किसी को चार दिन के वास्ते ॥२॥ कुछ दया दिल में धरो गौ मात की रक्षा करो । दूध घी देतो है यह पीरो जवां के वास्ते ॥३॥ सच कहो खुद गजे और जालिम है वह या कि नहीं। वे जुबां को मारते अपने मजे. के बासले ॥४॥ काट गल औरों का मांगें खैर अपनी जान की ।
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सोच कहां होगा भला उसका खदा के वास्ते ॥शा बेचिये नौ पान को हरगिज़ नहीं हरगिज़ नहीं बल्कि बन मन धन सभी दीजे गऊ के वास्ते ॥६॥ कर मना होना भता कलयुग नहीं करजुग है यह । न्यावया करता है वह सबके भने के वास्ते ॥७॥
(बाल-) बाली (तस्थि-कहरवा) नहां खेलाऊं दिख दोनों जहां में इसकी मुश्किल है।
..नोट-अनाव नवाब सफटीनेंट गवर्नर बहादुर लाई रेन वा पंचाप पर लेडी डेग यहाँ हिसार में तशरीफ़ बाये और बेटी रेन साहिवा ने कन्या-पाठशाला का निरीक्षण करके इनाम तरुप्पीम किया था उस समय फन्पानों में यह भजन पढ़ कर सुनाया था ।। बरी धन प्रापबेरी डेन को वहां पै पधारी है । हमारेगार साहेब की बड़ी प्यारी पिपारी ॥॥ परी किरपा करी नो मापने दर्शन दिखाए हैं। भाप सरकार है सबके महारानी इमारी हैं ॥२॥ बड़ादी मापने शोभा हमारी पाग्याता की । हमारे भाग अच्छे हैं वड़ किस्मत इमारी है ॥३॥
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हमारी कौन सुनता था, कौन हमको पढ़ाता था । हज़ारों आजतक मूरख, फिरें बहनें हमारी हैं ॥४॥ आपने की कृपा दृष्टी, जो कन्याओं की हालत पर 1. हज़ारों पाठशाला आज हर नगरी में जारी हैं ॥५॥ . खुशी क्योंकर न होवें हम, न क्यों धन्यवाद गावें हम | हमारे सामने बैठी, महारानी हमारी हैं ॥६॥ मुवारक हाथ से अपने, हमें ईनाम देवेंगी । इसी कारण हमारी, पाठशाला में पधारी हैं ॥७॥ हमें आशा है एक दिन को, मिडिल भी हो ही जावेगा । बड़ी दानी दया धारी, महारानी हमारी हैं ॥८॥ कहे - न्यामत सुनों बहनों, प्रभू से श्राज यह मांगो कि लेडी डेन की जय हो, जो हितकारी हमारी हैं ॥६॥
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(चाल - ) कुवाली (ताल - कहरवा ) कहॉ लेजाऊं दिल दोनों जहां में इसकी मुश्किल है |
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सुनों अब जैन सरदारो, ज़रा दिल में दया धारो । डूबती क़ौम की कश्ती, बचाना ही मुनासिव है ॥१॥ हिताहित जैन मंडल ने, है वस समझा दिया हमको ! अमल इस पर तुम्हें करना, कराना ही मुनासिव है ॥२॥
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वने हैं जब से यह फिरके.. दशा बिगड़ी है जिन मत की । तरका व तुम्हें दिल से, हटाना ही मुनासिव है || ३ || दिगम्बर और सितम्बर मिल, फैसला घर में कर लीजे । न्यायमत अब तो आपस में, निभाना ही मुनासिव है ॥ ४ ॥
२२ (चाल) कुवाली (ताल-कहरवा) है बहारे बाग़ दुनिया चंदरोज़ | व्यर्थ व्यय करना कराना छोड़टो । छोड़दो बहरे प्रभू तुम छोटो ॥१॥ नाच भारत को नचाया खूब सा ।
अव तो रंडियों का नचाना छोड़दो || २ || कर दया दुख्तर फिरोशी छोड़दो । बूढ़ों के सेहरा लगाना छोड़दो ||३|| लुट चुकी सारी वहार अब आप की । वाग़ बाडी का लुटाना छोड़ दो ||४|| वस जो बस रहने दो भूर और फेंक को ।
इस तरह धन का लुटाना छोड़ दो ||५|| न्यायमत उपकार औरों का करो ।
खुद गरज़ बनना बनाना छोड़ दो ||६||
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• (चाल-) खड़ताली (ताख-शहरवा) मज़ा देते हैं क्या यार तेरे पाल धूगर पाले ॥ सुनियो भारत के सरदार, सस मारन दिखलाने वाले। सत मारग दिसलाने वाले, बद रस्मों के हटाने पाजे टेक देखो इस भारत के बीच, कैसी होगई किरिया नीच । सपने लिगा मांस को बीच, परित सेठ कहाने वाले ॥१॥ खुद बो पड़ पन गए गुणवान वा सन्शी और प्रधान । औरत यूंही रही नादान रे विद्वान कहाने वाले ॥२॥ इनका अदंगी है नाम, करतो मंत्री पद का काम । रक्खी क्यों मूरख ना काम, सुनियो सभा कराने वले॥३॥ अप तो दिल में दया विचार, औरत की भी मुनो पुकार। इनको दीजे विद्या सार, दया का भाव दिखाने वाले ॥४॥ तुमने एम० ए० डिगरी पाई, इनकी कुछ तो करो सहाई। वरना होगी यू ही हंसाई, न्यायस कहते कहने वाले ॥५॥
(राग) मिश्रित (ताल-कहरया) (चाल) अारियों पै बैठा कबूतर आधी रात ॥
, (दो लड़कियों का आपस में बात चीत करना)
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सुन सुनरी वहना विधा परम सुखकार 1 हां हां विद्या सांची हमारी हितकार ॥१॥ सुन मुनरी बहना विद्या है नारी का सिंगार । हां होरी विद्या बिना पशू सम नार ||२|| सुन सुनरी बहना विद्या है जग में धन सार | हां होरी या को लेवें ना चोर चकार ॥३॥ सुन सुनरी विद्या सबका करे उपकार हां हां या से राजा भी करे सत्कार ||४||
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है न्यानत कैसी दानी हमारी सरकार । हां हॉरी फीना घर घर में विद्या परवार ||५||
२५
(राग) क़वाली (ताल) कहरवा (चान) कत्ल मत करनी मुझे तेग़ो तबर से देखना ॥
(राम का रण भूमि में रावण को समझाना)
सुन अरे रावण कई मैं बात निज मन की तुझे / फेरदे सीता सती ख्वाहिश नहीं धन की मुझे ||१||
गर करे कोई बुराई में बुरा मानू नहीं । और का गुण भी लगती है बात गुण की सुभे ॥ २॥
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२४
है कलह दुनिया में दुखदाई दुजानिव देखलो | याद है यह बात प्यारी जैन शासन की मुझे ॥३॥ वे, वजह लाखों मनुष्य रण में मरेंगे देखले । क्यों दिखाता है अरे जालिम विना रण की मुझे ॥४॥ बिन सिया सारा जगत सुनसान लगता है मुझे । है ख़बर कुछ भी नहीं घर वार और तन की मुझे ॥ ५ ॥ मेरे जीते जी सिया दुख पाय तेरी कुँदे में । जिंदगी अच्छी नहीं लगती है एक छिन की मुझे ॥ ६ ॥ हेच हैं सीता बिना दुनियां की सारी नैमतें । एक पल ठंडी नहीं लगती हवा वन की मुझे ||७|| तीर गर चिल्ले चढ़ाया तो कुयामत आयगी । फेर मानू गा नही सौगन्द लछमन की मुझे ||८|| न्यायमत रघुवीर ने यह भी कहा गर दे सिया । वख्श दूगा सब खुता कुछ ज़िड नहीं ररण की मुझे ॥ ॥
२६
(राग) कुवाली (ताल) कहरवा (चाल) कह लेजाऊ दिल दोनों जर्दा में इसकी मुश्किल है ॥
नहीं काबू में आता है दिले नादान क्या कीजे । इसे काबू में लाने का कहो सामान क्या कीजे ॥१॥
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कभी विषयों में जाता है कभी भोगों में आता है। कहीं टिकता नहीं मृरख निपट नादान क्या कीजे ॥२॥ जवां पर ख्वाहिशें लाखों हजारों आरज़ दिल में। मगर होते नहीं पूरे कभी अरमान क्या कीजे ॥३॥ 'न्यायमत दिल को समझाओ करे सन्तोष दुनिया में। विना इसके नहीं चारा अरे अज्ञान क्या कीजे ॥१॥
(राग) कवाली (ताल) कहरवा (चाल) कत्ल मत करना मुझे तेगो नबर से देखना ॥ वेशुवा बदकार की गलियों में जाना छोड़दे । छोड़दे आंखें मिलाना दिल लगाना छोड़दे ॥१॥ भोली भाली सूरतों को देख ललचाओ न दिल । सवको सब चित चोर चंचल मूह लगाना छोड़दे ॥२॥ तर्क कर इनकी मुहब्बत यह चलन अच्छा नहीं। इनके जाना छोड़दे घर में बुलाना छोड़दे ॥३॥ ऐसे काफिर को कभी दिलमें जगह दीजे नहीं। हो यह जिस महफ़िल में उस महफ़िल में जाना छोडदे।।॥ जिक्र तक करना नहीं अच्छा है इनका न्यायमन। है यही वहतर कि यह किस्सा फिसाना छो दे ॥५॥
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(राग) कवाली (ताल) कहरवा (चाल) करल मत करना मुझे तेगो नबर से देखना ॥ मय कशी में देखलो यारो मज़ा कुछ भी नहीं । खुद व खुद बेखुद बनें लेकिन मजा कुछ भी नहीं ॥१॥ सारा घर का मालो जर बोतल के रस्ते खोदिया ! मुफ्त में इज्जत गई पाया मज़ा कुछ भी नहीं ॥२॥ जब नशा उतरी तो हालस और अवतर होगई । सासी वोतल देखकर बोले मजा कुछ भी नहीं ॥३॥ रात दिन नारी बेचारी जान को रोया करे । ' ऐसी मय रूवारी पे लानत है मज़ा कुछ भी नहीं ॥४॥ पायमत इस मय की उम्फत का नतीज़ा देख लो। बस खरावी के सिवा इसमें मज़ा कुछ भी नहीं । ५॥
(राग) रसिया (ताल) कहरवा (चाल) काँटा लागोरे देवरिया मोसे संग चलो ना जाय ॥ देखो देखोरे चेतनपा तेरे संग चले ना कोय । संग चले ना कोय ॥ नाती साथी परियन लोय ॥टेक॥
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२७
मात तात स्वास्थ के साथी । हैं मतलब के सगे संगाती तेरा हितू न कोय || तेरे० ॥ १ ॥
ठी नैना उल्फत वांधी || किसके सौना किसके चांदी क्यों मूरख पत खोय || तेरे ० ||२||
नदी नाव संयोग मिलाया ।। सो सब जन मिल कुटंब काया सदा रहे ना कोय || तेरे ० || ३ ||
इक दिन पवन चलेगी आंधी | किसकी बीबी किसकी बांदी उलट सुलट सब होय || तेरे ० ||४||
खोटा वरमज किया पौदारी ॥ टांडा जोड़ धरा सर भारी किस विष हलका होय || तेरे ० ||५||
आश्रव बंध चुका इकवारा || हलका हो सर बोझा भारा तान बदरिया सोय || तेरे ० ||६||
न्यापत मंज़िल दूर पड़ी है ।। विकट बड़ी है अग्नि कड़ी है कांटे शूल न बोय ॥ तेरे० ||७||
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३०
(राग) देश (नाम) तीन (चाल) नित्य फेरो माला इरकी रे कुछ कीजे नेकी जगमें रे || कुछ कीजे नेकी जगमें रे (टेक) अम जल औषध ज्ञान अभय पद, दीजे दान विचार रे । बैरी मित्र भेद को तज कर, कर सबका उपकार रे ॥१॥
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२८
खाली हाथ गये लाखों ही, राजा साहूकार रे । जो धर्मार्थ लगावे सम्पति बही बड़ा सरदार रे ॥२॥ आठ अंग समकित के जामें, चार स्वपर हितकार रे । स्थिति करण उपगूहन वात्सल्य, निर्विचिकित्सा साररे ॥३॥ जो दुखियों की करुणा पाले, टाले विपति निहार रे । सोही सुख पावे तिर जावे, भवसागर से पार रे ॥४॥ कालेज जैन मदरसे खोलो, अरु पुस्तक भण्डार रे न्यामत ज्ञान दान सम जगमें, दूजा नहीं शुभकार रे ||५|| नोट
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जिले हिसार में लांघड़ी एक छोटासा कस्बा है जो विश्नोई लोगों की वस्ती है वहां पर एक विश्नोई कमेटी है जिसके प्रेजिडेन्ट टांडीजी चौधरी दल्लूराम हैं आप अव फार्सी व उर्दू जुवान के एक आला दर्जे के शाइर (कवि ) हैं इस समय में आपके मुकाबले का कोई कोई कवि मिलता है आपका " कोसरी " तखल्लुस हैं आप मेरे बड़े मित्र हैं और जैन धर्म के विषय में प्रायः मेरे से वार्तालाप करते रहते हैं आपने आत्मा के विषय में २१ भजन बनाये हैं जो सर्व साधारण के हितार्थ नीचे लिखे जाते हैं देखो नम्बर ३१ इकत्तीस से ५१ तक ॥। इन भजनों में मात्मा का स्वरूप निश्चय नय से दिखलाया है
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(राग) कवाली (ताल) कहरवा (चाल) है यहारे घागे दुनिया
चन्द रोज़ इब्तदा और इन्तहा मुझको नहीं।
वह वकाई हूं फना मुझको नही ॥१॥ दोन के झगड़ों से हूं फरिगनशीं ।
खौफ़ दुनिया का जरा मुझको नहीं ।।२।। हूं सरापा एक हुस्ने ला जवाल ।
हसरते नाज़ो अदा मुझको नहीं ।।३।। खुद वखुद हूं और खुद मुख्तार हूं।
- यानि तकलीफ खुदा मुझको नहीं ॥४॥ अस्लियत में हाल यकसां है मेरा । ।
सदमए रंजो वला मुझको नहीं ॥५॥ हूं सुवर्रा जीनते पोशाक से।
लज्जते श्रावो गिजा मुझको नहीं ॥६॥ यह तो सब कुछ है मगर अफ़सोस है।
कोसरी अपना पता मुझको नहीं ॥७॥
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[राग] कमाती [ सात ] कहरमा [चाल] है बहारे वाग दुनियां बन्द रोग। फायदा क्या सोहरसे अगियार से।
दोस्ती साज़िप है अपने पार में ॥१॥ नाशिक तह मुझे मुख चाहिये।
काम बुलमुल को नहीं सार से ॥२॥ उनसरे रूही हूँ मैं स्वाझी नहीं।
___ कट नहीं वसा कभी नववार से ॥३॥ है वरावर शहरो वैहां सप मुझे।।
शेर से दहशत न खसरा मार से ग४॥ सूद है मुझको न छुछ जुकसान है।
दीप से गुफ्तार से रफतार से ॥५॥ मुझको तुत्फे वस्ल जिस्मानी नही।
मिस्त्र हूँ मैं अपने ही दीवार से ॥६॥ कोसरी लिप और सहानी गमला ।
आत्मा खुश है तेरे अशआर से ॥७॥
(राग) कचाती (माल) फहरवा (चाल) है वहारे धाग
दुनिया चंद रोज़
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३१
याद है सब बस्के रुहानी मुझे।
साक समझे अक्ल इन्सानी मुझे ॥ १॥ परी पर ऐब से हर हाल में ।
हो नहीं सकती पशेमानी मुझे ॥२॥ वह पकाई मिटा सक्ते मही।
आग मिही और दवा पानो मुझे ॥३॥ आत्माई देख कैसी चीज़ हूं।
प्राण से प्यारा समझ ज्ञानी मुझे ॥४॥ ' हो नहीं सकता झुक्के कोई परण ।
चा करेगी तिचे यूनानी मुझे ॥५॥ हर तरको राज मेरा दहर में।
हर वरह हासिल है आशानी मुझे ॥६॥ आना और रहे पाक हूं ।
फिर न कहना कोसरी, फानी मुके ॥७॥
(राग) पाली (ताल) कहरवा (चाल) है पहारे घाग
__ दुनिश चंद रोज हूं मैं दूर है मैं न हूं। नेस्ती से दूर हूँ मैं दूर हूँ ॥१॥
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३२
किसकी मंजूरीकी मुझको अहतियाज । आपड़ी अपने को खुद मंजूर हूं ||२||
मैं न शैदाए परी हूं ग़ाफ़िलो |
मैं न घ्रुशताके जमाले हूर हूं ॥ ३ ॥ मैं न दुनिया को हूं आफत में असीर ।
11811
मैं न दौलत के लिये रंजूर हूं ||४|| बेनियाजे. महफिले साकी हूं मैं ।
आप मैं अपने नशे में चूर हूं ॥५॥
रूह कहते हैं मुझे अहले अरब ।
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आत्मा मैं हिद में मशहूर हूं ॥ ६ ॥
मैं न हूं महकूम सुलतानो खुदेव मैंन
न मोहताजे शह फग़फ़र हूं ॥ ७ ॥
३५
(राग) कुवाली (ताल) कहरवा (चाल) है बहारे बाम
. दुनिया चद सेन ॥
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य दिले हुशियार दीवाना न हो । ग़ैर की उल्फत में वेगाना न हो ॥ १ ॥
#लकबशाहे चीन
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३
आप अपने आपका आशिक त यन ।
और मे जिनहार याराना न हो ॥२॥ घर खुदा का तूने समझा है जिसे ।
अय ग्वरावाती वह मय खाना न हो ॥३॥ जान रक्खा है जिसे जामे यात ।
वह कही बेकार पैमाना न हो ॥ ४ ॥ जो नजर आता है तुझ को नोस्तां ।
अय दिले गाफिल वह वीराना न हो ॥ ५॥ कोसरी में में किया कर रात दिन।
मासिवा का याद अफ़साना न हो ॥६॥
. (राग) कवाली (ताल) स्यद (ल) गप दोनों जहान नजर से गुजर तेरी ज्ञान का कोई बशर ना मिला न गमे खिजां न फसादे गुल अजय नात्माकी बहार है। यही वाग है यही अत्र है यही जाम है यही यार है ॥१॥ मुझे लुत्फ़ है मेरी यादमं यही है खुशी दिले शादमें। मेरे ज़हन में नहीं कुछ जहां यह ज़माना सारा गुवार हे ॥२॥ न पसंद कुसरीन मेज़ है मेरी चाल मुस्त न रोज। मुझे हर जगहसे गुरेज़ है मेरा हर मकाम गुनार है ॥ ३॥
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न मैं अर्ज हूँ न मैं तूल हूं न मैं खार हूँ न मैं फूल हूं। न मैं शाख हूंन अमूल हूं मुझे आप मुझ से करार है ॥४॥ मैं हूं कोसरी मैं हूं कोसरी मैं हूँ कोसरी मैं हूँ कोसरी । मेरा लाधड़ीमें कयाम है जो करीब शहर हिसार है ॥५॥
(राग) कबाली (ताल) कहरवा चाल इलाजे दर्दे दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता ॥ गुलिस्तां और बियावॉ में मैं ही तो हूं मैं ही तो हूं। दिलं रंजूर शादों में मैं ही तो हूं मैं ही तो हूं ॥१॥ कमी उलझा दिया खुदको कभी सुलझा दिया खुदको । किसी की जुल्फ पेचां में मैं ही तो हूं मैं ही तो हूँ ॥२॥ कभी ज़ाहिद कभी आसी कभी पंडित कभी काज़ी । गरज़ हिन्दू मुसलमां में मैं ही तो हूं मैं ही तो हूं ॥३॥ कभी उस्ताद आलिम हूं कभी हूं तिफले अवजद ख्वां । स्कूलों में दविस्तां में मैं ही तो हूं मैं ही तो हूं ॥४॥ कोसरी सूरतें क्या क्या बदलता हूं मैं आलम में । मलक में और इन्सां में मैं ही तो हूं मैं ही तो हूं ॥५॥
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(गग) कवाती (लाल) कह वा (चाल) न० ३७ की पका मेरे न हरगिज़ है न मसान और वतन मेरे। जमीं मेरी नज़र मेरे पिसर मेरे न जन मेरे ||१|| अकेला हूं अकेला हूँ अबला हूं अकेला हूँ। पिढर मेरे न मां मेरे न भाई और बहन मेरे ॥२॥ न खाता हुं न पीता हूं जनमता हूँ न मरता हूं। लहू मेरे न रग मेरे न गन मेरे न तन मेरे ॥३॥ न नाक अपने न अांख अपने न कान अपने न सर अपने। न हाथ अपने न टांग अपने न छात्रों और बदन मेरो॥४॥ बदाके आसमां काई में वह मूरज ज़माने में। निकलता हूँ न छुपता हुं नही लगता गदन मेरे ॥५॥ किसी से मैं न कोई मुझ से, मै हूँ कोसरी यक्ता । पिदर मेरे न मां पर पिसर मेरे न जन मेरे ॥६॥
(राग) पाली (ताल) कदरश (गल) न०३७ की मज़े लेती है क्या क्या मान्मा परमात्मा होकर ।
कि हासिलकी वका मैंने सुदीमें खुद फ़ना होकर।।२।। मैं जिसको ढूंढता फिरता था अपने आप में पाया ।
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३६
बस मैं भूलकर यूं ही फिरा दर२ गदा होकर ॥ २ ॥ कभी रिन्दों में जा बैठा शरावे अर्गवां पीकर | कभी परहेज़गारों में मिला मैं पारसा हो कर ||३|| सरासर मिलगया इकरोज मिट्टी में शवाब उनका ।
रहा जो पास गैरों के हमारा आशना होकर ॥४॥ था सब जलवा श्रात्माका राम सीता हरी रुकमन ।
इसी ने सबको दीवाना बनाया दिल रूवा होकर ॥ ५ ॥ अबस तुम कोसरी मरते हो इस मिट्टी के पुतले पे | मिलो दूंगा कभी मिट्टीमे मैं इसको जुदा होकर ॥६॥
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(राग) कवाली (ताल) कहरवा (चाख) इलाजे दर्दे दिल तुमसे मसीहा हो नहीं सकता ।
फ़ना कैसी बक़ा कैसी नई पोशाक बदली है ।
फकत बदला है जिस्म अपना न रूहे पाकबदली है || १॥ वह सबज़ा हूं उगा सौ बार जल २ कर इसी जासे । न अपनी रूह बदली है मगर यह ख़ाक बदली है ॥२॥ , तमाशे रूह के देखो कि क्या २ रंग बदले हैं।
कहीं बिजली बनी थमकर कहीं चालाक बदली है ॥ ३॥
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बदन को मैं, तु समझा है खुदी को भूल बैठा है।
यह क्या हालन भला नूने दिले चाक बदली है।।४।। न कहना कोसरी मुझको कि है है मर गया वह तो।
मजल कैसी क़ज़ा कैसी नई पोशाक बदली है ॥५॥
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(राग) कवाली तालकहरग [चाल इलाजे दर्द दिल तुम
से मसीहा हो नहीं सकता ॥ फना को तू वका समझा वका को नू फना समझा। अगर समझा तो क्या समझा नसली मुद्दा समझा॥१॥ पड़े पत्थर तेरी इस ना समझ पर अय दिले नादां। बदन को भात्मा समझा न,तु खुदको जरा समझा ॥२॥
भरे हिन्द वता मुझ को किसे तू राम कहता है। मियां मुसलिम ज़रा कहना कि त फिसको खुदा समझा||३||
यही है आत्मा जिसके करशमे जा बना देखे । यही रूहे मुकद्दस है कि जिस को कित्रिया समझा ॥४
यही नूरे मनव्वर है कि जिसका सच यह पर तो है॥ यही है आत्मा जिस को वशर परमात्मा समझा ||
न तन होगा न धन होगा रहेगी आत्मा कायम । इसी का दौर दौरा है यही मै मामरा समझा ॥६॥
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यह सब अवतार पैगम्बर जहुरे आत्मा के हैं। अगर यूं कौसरी समझा तो बेशक तू चना समझा।।७॥
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[राप] वाली [नाता] रूपक [चाल] करत मत करना मुझे तेगो तवर से देखना॥ "आत्मा में आत्मा के मासिवा कुछ भी नहीं ।
है वकाईको वका दारे फना कुछ भी नहीं ॥१॥ 'इस तरह हूं जिस तरह पत्थरमें पिनहां है शरर ।।
"ज्ञानमय हूं मुझमें गिल श्रावो हवा कुछ भी नहीं ॥२॥ रूह यह कहती हुई निकली बदनको तोड़ कर । ___ है मेरी शक्ति अतुल लेकिन सदा कुछभी नहीं ॥३॥ किसको कांशी और मक्का हूंडता फिरता है तू ।। • है यही रूहे मुक़द्दस और खुदा कुछ भी नहीं ॥४॥ कुद्रती गुलजार है और बहरे वे पायां है यह ।
आत्माकी इब्तदा और इन्तहा कुछ भी नहीं ॥५॥ फैजे रूहानी है इनका आर्जी कुछ नाम है।
वरना चश्मों गोश क्या यह दस्तोपा कुछभी नहीं॥६॥ कोसरी तू याद रख मेरा यह रूहानी सखुन । ' ' लज्जाते दुनियाए फानी में बजा कुछ भी नहीं ॥७॥
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(राग) कुवाली (ताल) शकुन्तला तुम्हें याद हो कि
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क (चाल) मैं वही हॅ प्यारी याद हो ।
मैं कभी तो शाहे जहान था तुम्हें याद हो कि न याद हो । कभी दर वदर फिरा ज्यू गढा तुम्हें याद हो कि न याद हो ॥१॥ कभी आसमां पे मीं हुआ। कभी घर में गोशय गजी हुआ । मेरा मुख्तलिफ गृही है पता तुम्हे याद हो कि न याद हो ||२|| कभी भाग हुआ शोलेज़ा कभी खाक में हुआ खुदनुमा । कभी आाव था कभी था हवा तुम्हें याद हो कि न याद हो || ३ || जो है कसरी व बका यही पेश्तर भी रुमाल था । मुझे याद है मेरा माजरा तुम याद हो कि न याद हो ॥४॥
मुझे
در
(राग) वामी (नाल) उप (चाल) में वही प्यारी शकुन्तला तुम्हें ग्रांट हो किन याद हो ।
मुक्के लोग समझे जिस कदर मेरा उससे बढ़ के कमाल है मैं हूं वह कमाले हे वका नदी जिसका खौफे जुवाल है ॥ १ ॥
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कहूं किससे अपना मैं माजरा न जरा घटा न जरा बढ़ा। मैं वही रहा जोकि पहिले था मेरा नाम नूरो जलाल
है ।। न बका से मुझ मैं हुनर हुआ न फना से मेरा ज़रर हुआ। न मलक हुआ न वशर हुआ मेरा और ही सा
जमाल है ॥३॥ कहीं जीव हूं कहीं ब्रह्म हूं कहीं नूर हूं कहीं जोत हूं । कहीं रूह हूं कहीं आत्मा यही हाल है यही काल है ॥४। मैं हूं देखता इल्म गैव से मेरी जात पाक है ऐब से । मुझे गहम है न गुमान है न कयास है न रू.शाल है। ५॥ मैं लतीफ हूं मैं लतीफ हू मैं लतीफ हू मैं लतीफ हूं । न कसोफ़ हूं न कसीफ़ हूं मेरो इद न गर्यो शुमाल है ॥६॥ मुझे कौसरी नही कुछ फना मैं बका बका मैं वका बका । नहीं गैर जिसको समझ सका मेरा इस तरह का
सबाल है॥७॥
[राग] संकीर्ण भैरवीं [ ताल ] कहरवा [चाल ] घर से
या कौन खुदा के लिये लाया मुझको । हुस्न लैला न कभी इसके बराबर होगा। · कोई जलवा न कभी रूह के हमसर होगा ॥१॥
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किस्सए रूह व बदन में अभी जल्दी क्या है। भाप खुल जायगा जो जिसमें कि जोहर होगा ।।२।। हाथ जिस दिन तुझे आएगी वका की शाही । हेच नज़रों में तेरी मुल्के सिकन्दर होगा ॥३॥ छोड़ देगी इसे जब रूहे मुकद्दस ग़ाफ़िल । यह बदन मट्टी में मट्टी तेरा मिल कर होगा ॥४॥
आखिर इस हिर्मोहवा का है खातमा कि नहीं । मुजतरिब और कहाँ तक दिले मुज़तिर होगा || काम आएगा न यह जिस्म रक्कर ये रूह । श्राव मोती में न होगी तो वह पत्थर होगा ॥ ६ ॥ होंगे दुनियां में हजारों ही सखुन वर लेकिन । कौसरी भा न ज़माने में सखुन वर होगा ||७॥
[राग] कृपालो [नाल ] कहरवा [चाल है यहारे बाग
___ दुनियां चन्द गेज़ रूह यों निकलेगी जिसमें ज़ार से ।
जिस तरह नगमा हो जाहिर तार मे ॥१॥ वे खुदी मुझको खुदी में हो गई ।
क्या रहा मतलब के अगियार से ॥२॥
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मासिवा से कुछ इलाका ही नहीं ।
___ मैं गले मिलता हूं अपने यार से ॥ ३ ॥ फूल क्या है खार क्या है वे खवर ।
पूछ जाकर बुलबुले गुलज़ार से ॥ ४ ॥ घूमता हूं हाथ अपने वजद में ।
वे मज़ा हूं वोसए रुखसार से ॥ ५ ॥ हूं मैं अपना भाप आशिक गाफिलो ।
फायदा क्या गैर के दीदार से ॥ ६ ॥ मात्मा हूं और रूहे पाक हूँ।
कौसरी रखना तू मुझको प्यार से ॥ ७ ॥
(राग) कवाली (ताल) कहरवा ( चाल ) है वहारे वाग
दुनिया चन्द रोज़। रूह को होती नहीं जहमत कोई ,
आत्मा जैसी नहीं नैमत भोई ॥१॥ है बदन में पर बदन से है जुदा।।
ऐसी दिखलाए 'ग्ला कुदरत कोई ॥ २ ॥ दें नहीं सका मुझे जिल्लत कोई ।
'दे नही सकता मुझे इज्जत कोई ॥३॥
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मैं हूं वह रूहे लतीफो वे नियाज़
मुझको दुनिया की नहीं हाजत कोई ॥ ४ ॥ कौसरी हर रग में हम रग हूँ।
सादगी मुझ में न है रंगत कोई ।। ५ ।।
(राग) कृषाली ( ताल ) कहग्या (चाल ) है वहारे याग
दुनियाँ बन्द रोज। कब कहा मैने कि मुश्ते खाक है।
आत्मा हूं और रूहे पाक हूँ ॥१॥ इसरते जन्नत, न दोज़ख़ का खतर ।
हर तरह ये खौफ हूँ ये वाक हूं ॥२॥ कौन कहता है कि मैं नादान है।
मै सरापा अक्ल है इद्राक ह ॥३॥ दीन दुनिया में नहीं मतलप मुझे।
ये न शादा न मैं ग़मनाक ९ ॥ ४ ॥ में न उरचानी से कुछ बदनाम हैं।
मैं न मोहनाजे जरो पोशाक हूं !! ५ ॥ हो नहीं सकती मुझे फ़िक्र मुबाश ।
वे नियाजे खुर्दना गुराक हूं ॥६॥
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नाम अपना क्या बताऊ कौसली ।
मात्मा हूं और रूहे पाक हूं ॥ ७ ॥
(राग) कगनी (नाल) कहरया ( चाल । है वहारे बाग
दुनिया चंद रोज़। है सपा और बरामर आत्मा ।
सात तत्वन में हूँ बस्तर मात्मा ॥१॥ मैं मुसतमानों में रहे पाफ हूँ। __न्दुिओं में है पवित्तर आत्मा ॥२॥ आंख हो या कानो या नाक हो ।
सर हवासों की है अफसर प्रात्मा ॥३॥ तन कसीफ और रूह हैं बिलकुल लतीफ ।
जिस्म कांटा है गुलेतर आत्मा ॥४॥ रूह यह नूरे तजल्ली हैं कहीं।
है कहीं खुर्शीद खाबर आत्मा ॥ ५ ॥ है शरर यह रूह पत्थर जिस्म है।
है वदन तलवार जौहर नात्मा ॥ ६ : गर कोई पूछे तो कहनौसरी
आत्मा है और मुकर्रर आत्मा ॥ ७ ॥
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(राग) वाली तुमसे
५०
व ) का
४५
हो नहीं सकता ।
कहीं रूहे मुकद्दस कही हिन्दू का मन
मैं
•
कही वेदोका पति हूँ की उस्ताद कुरो हु । कहीं ही धर्म हिन्दू का की मुलईमां हूँ ॥ २॥
}
न कुछ है इनदा मेरी न कुछ है इन्तहा मेरी ।
इलाजे दर्द दिल
( राग ) काली ( ताल :
तुम से
कभी मशरक में जादि न मिट्टी से हुआ पैदा न मिट्टी में मिलूंगा फिर । कभी मैं मा तावह कभी महरे दरखुराा हूं ॥ ३ ॥
कधी एक मान्सा है मैं | में कफ कुलमां है ॥ श
आत्मा अय कसरी जिसकी नही मत्यु : वातिन रे कामिह बाद एक इन्सां है ॥ ५ ॥
नहीं इतनी ख़बर मुझको
भी गवि में पिनां हूं ॥२॥
घर
हवा (नाल ) इर्द दिल
हो
सकता ॥
मैं हूँ
कही हूं यात्मा देखो कहीं रूहे जहां मैं हूँ ॥
मैं हूँ ।
१ ॥
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ज़मीं पर हूं कभी जर्रा फलक पर हूँ कभी मूरज । __ कभी तिफले दबिस्ता हूं कभी पीरे मुगां मैं हूं ॥२॥ न हिन्दू न ईसाई मुसलमां हूं न तरसाई । __ कभी ऊपर ज़मींके कभी जेर आस्मां मैं हूं ॥३॥ तु खुद को कौसरी पहिचानले गर होश है तुझको ।
न गैरों को समझ तू दोस्त तेरा महरवां मैं हूँ ॥४॥
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* इति श्री चौधरी दल्लूराम "कौसरी ' रचित *
॥ भजन समाप्तम् ।।
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५२ (राग) छाया लघत्य देश (ताल) फहरवा (चाल) चादर
झीनो राम, रामनाम रस भीनी ॥ चेतन देले दान, हां हां चेतन देले दान,
मान मान यश लेले ॥ टेक ।। ग्राम ग्राम में सोल मदरसे, दुक विद्या का देले दान ।। नगरूनगर में कालिज रचकर, नर भव का फल ले ले
लेले लेले मान ।। १ ॥ गली गली सरस्वती भंडारा, कर कर पुस्तक मेले मान । दूर करो पाखंड जगत का, जान सिखा कर चेले चेले
चेले मान ।। २।। पर घर में जिन शाखन चरचा, आठ पहर हर वले मान। वामत तज मालस पारस क, चरण कमल को सेले सेले
सेले मान ॥ ३ ॥
(राग) टोला (नाल) फारया (चाल) साँवरिया ढोला
भान तो जगाई मेरी नींद में । भरी हारी बहनो भोजन ना कीजे प्यारी रानको ॥ टेका।
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यामे दोष डा री बहनों,
मानो जिनवाणी प्यारी बातको ॥ १ ॥ चिटी पंखी पखेरू देखो,
पानी भी न पीये रातको ॥२॥। । कहे न्यायत तजो निशि भोजन,
अंजल आदि फल पातको ॥ ३॥
(गग ) खडताल (तात ) वाइरसा ( चाल ) अपनी हमें भक्ती
का कुन टीने दान ॥ बानो जैन किरया पे, डुक दीजे ध्यान ॥ टेक ॥ __मस उरनो जल अन छाना, गा में फिरेंजीव बहु नाना ।
देखलो कर के ध्यान ॥ वहनो० ॥ १ ॥ बीझी लकड़ी मत मारो, मत जीव जन्तु को मारो।
तुम्हारा हो झल्यान ॥ बहनो० ॥ २ ॥ नहा धो जिन दर्शन कीजे नरभव का लाहा लीजे ।
मिले शिवपुर अस्थान ॥ बहनो०॥३॥ नित्य धर्म कर्म चित लायो, न्यामत मत पाप कमायो ।
कही ऐसी भगवान ॥ नहनो० ॥ ४ ॥
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(राग) देश (तामा ) कहरवा (चाल ) वली देदे कान्हा
मोमो मुग्ली देदे मोय ॥ अपने निज पद को मन खोय,
अपने निज पद को मत खोय । वेतन मैं समझाऊं तोय,
अपने निज पद को मत खोय ॥ टंक ॥ निज आतम अनुभव तनकर मत ।
पर परणति त होय विषय भोग में पड़ चेतन मत.
निज रस नचन खोय ।। १ ।। निन परभेद विज्ञान प्रकाशा
नित्य परमानन्द होय। राग कपाय हलाहल तज कर,
पी यानम गुण नोय ॥२॥ अशुभ त्याग शुभ लाग ढोक रज,
शुद्ध अवस्था जाय। करम कुनाचल तोड़ फोड़ कर
मोह अरि रम चाय ॥"
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न्यामत वहिरातम गति तजदे, अन्तर आतम होय ।
श्रव बंध मिटादे दोनों,
परमातम पद होय ॥ ४ ॥
૬
(राग) कवाली ( ताल - रूपक) (चाल) कौन कहता है मुझे मैं नेक अतवारों में हूँ ॥
नोट -- भारत का केकई से नाराज़ होना और रामचन्द्र जी के बनोनास जाने पर रंज करना ॥
जमीं मुझको छुपाले मैं गुनहगारों में हूं' । टूट कर गिरजा फलक मैं श्राज दुखियारों में हूं ॥ १ ॥ किस तरह दिखलाऊं अपना मुंह जगत् के सामने ।
केकई माता की करनी से शरम सारों में हूं ॥ २ ॥ अय मेरी माता तेरी दुनियां से न्यारी है मती ।
तेरे कारण आज मैं देखो खतावारों में हू ॥ ३ ॥ छाया अन्धेर और घर घर में मातम पड़गया ।
देख हालत रंजोगम के मैं गिरफ्तारों में हू ॥ ४ ॥ रघुकुल के आज दो शमशो क़मर जाते रहे ।
रहगया कम्बख्त मैं किस्मत से लाचारों में हूं ॥ ५ ॥
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किस नर, बैट्ट भला भाई बड़े के तुरन्त पर । ___ मैं तो श्री रघुवीर जी के इक परिस्तारों में हूँ ॥६॥ मात सीता वन में तकलीफें सहेगी किस तरह ।
क्या करूं किससे कह में सख्त लाचारों में हूँ ॥७॥ न्यायपत फिर मर्न न कर जोड़ पाता से कहा ।
चलो माई गम को लेथा मैं नाकारों मेंह ॥ ८॥
(राग) ज़िना (ताल) परी पलारी ठेका (चा ) हाय
अच्छे पिया वहीं देश चुनालो हिद में जो धरायन है॥ नोट-केकई का भरन को लेकर वन में रामचन्द्रनी के पास जाना और वापिस पाने के लिये प्रार्थना करना । प्यारे सुनियो अरन मोरी घरको पधारो, तुम विन श्री
कल्पावन है ॥ टेक ॥ हुई है भूल में बंशक बड़ी स्वना मुझ से। खता भी ऐसी कि जाना नहीं कहा मुझ से॥ भरत भी सुनने ही नागज होगया मुझ में।
भरत क्या सारा ज़माना ही फिरपया मुझ से ।। हाय छोटे नड़ा सब सिर धुन मोह, निदा के वचन
मुनापन है॥१॥
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है आज सारी अयोध्या में पड़गया मातम। जिधर को देखू उधर रंजोगम का है भालम । अन्धेर राज में छाये न किस तरह पर जो।
हो दूर तुझसा रघुकुल का नैय्यरेआजम ॥ बेटा मात सुमित्रा और कौशल्या, नैनों से नीर
वहावत है ॥२॥ मैं इक तो नारी हूं दुजे गई थी मति मारी । बिना विचार के जो बात मुंह से उच्चारी॥ "कलंक लगना था जो सो तो लग गया मेरे ।
किसी का दोष नहीं है करमगतो न्यारी । देखो कर्म बड़े वलवान किसी की भी नही पार
बसावत हे ॥३॥ जो होना था सो हुआ अब खयाल दूर करो। कसूर माफ करो और सर पै ताज धरो॥ खड़े रहेंगे भरत चरत तेरी सेवा में।
चमर फिरायगा लछमन खुशी से राज करो। न्यामत दिन सोचे करनी दुखदाई केकई खुद पछ-'
ताबत है ॥४॥
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५८ (राग) फवाली (नाल ) कहरमा (चाल) लाजे दर्द दिल
तुमसे मसीहा हो नहीं सकता। नोट-राम का भरत और केकड़े को जवाब देना। भयोध्या को मेरी माना में उलटा जा नहीं सकता। वचन जो कह दिया मैने उमे उलटा नहीं सना ॥ ॥ तेरे इस हुक्म की माता ना तापीन क्योंकर हो। टर्स अपने वचन मे यह जुबां पर ला नहीं सकता ॥२॥ मरत को राज करना है मुझं वन वन में फिरना है। किसीसे भी लिखा तकदीर मेठा जा नही माना॥३॥ राजसा कुछ नहीं अफसोम अय माता मेरे मन में .
घुवंशो के दिल में ऐमा अम्मा आ नहीं गाना ॥क्षा रघुवंशी इमंशा कौनक बातों के पूर है । चाहं दुनियां पलट जाये फरक कुछ शा नहीं जाना ॥५॥ चाहे मूरज भूल जाये निकलना ठीक पूरब से । हकम माना का पर दिल से हमारे जा नही माना। धर्म के सामने माना राज और पाट या शय है । अगर जां भी चली जायं नो परमा श्रा नहीं सकता। भरत जा राज कर भाई यही तुझको मुनासिर है कभी फिर में भी भाऊंगा मगर अब था नहीं सकता।
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भरत इक धर्म से मिल जायगी दुनियां की सब नैमत पता, है कौनसी शय जो धरम से पा नहीं सकता ॥६॥
(राग) कवाली ( ताल ) सपक ( चाल ) कौन कहता है मुझे
मैं नेक प्रतवारी हूँ॥ जैन दल में पात्सल्यता आजकल जाती रही, जोश इमदर्दी मुहब्चन आज कल जानी रही ॥१॥ चल बसी विद्या अविद्या सबके दिल में छा गई, बस नुमायश रह गई लेकिन असल जाती रही ॥२॥ जैन की मदुम शुमारी रात दिन घटने लगी, इसकी अब तादाद बढ़ने की शरुल जानी रही ॥३॥ हैं कहां अकलंक आलिम, पवन सुत से चली, रात दिन की फूट में सबकी अकल जाती रही ॥४॥ दूध घी मिलता नहीं कमज़ोर सारे बन गये. गो कुशी होने से घी मिलने की कल जाती रही ॥५॥ व्यर्थ व्यय करने के तो लाखों दफ्तर खुल गये, जैन कौलिज की मगर-विलकुल मिसल जाती रही ॥६॥ क्यों नहीं खुलता है कौलिज देर है किस बात की,
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૩
दिन मुहरत देखने की क्या मल जाती रही ॥७॥ खाने जंगी छोड़ विद्या की तरक्की कीजिये, अवती दीगाम्बर स्वेताम्बर की भी शल्य जाती रही ||८|| अन तो कॉलिज को विचारों मिलके आगे के लिये, न्यायमत जाने दो जो कुछ भाज कता जाती रही ||६||
६.
(राग) कुवाली (ताल) कहरया ( वास्त ) साजे दर्दे दिल तुम से मलीहा हो नहीं सकता ॥
प्रभू ऐसा धरम हृदय में मेरे कूट कर भग्दे, न छोडूं गर कोई बदले में दुनिया भी नज़र करदे ||१|| न संशय कोई पैदा हो न दिल दुनिया पे शैदा हो, यकीं साटिका को पवित्र आत्मा करदे ||२॥ न नफरत हो न शिकवा हो न शेवा ऐवजोई का, सरापा ऐव पोशीका हमारे दिल में घर कर ||३|| बखीली न कंजूसी हसद कीना दिला जारी, न दिल में वद गुणानी हो कोई ऐसा असर कर ||४|| प्राणी मात्र का हूं वह दुखियों का शमी हूं, गुणी लोगों का शायक हूं यही सुझमें हुनर करदे ||५||
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राम जैसा न गम्भीर आज्ञाकार लछमन सा, खुशी गम सब बरावर हो मेरा ऐला जिगर करदे ॥६॥ मेरे दिल में तमरना हो न दोलन की न हशमत की, शवे तारीक पापों की हटाकर के सहर करदे ॥७॥ हो केवल ज्ञान पैदा एक दिन हृदय में न्यामत के, वीतरागी दशा करके हमेशा को अमर अग्दे ॥८॥
(राग ) कवाली ( नाल ) कहरवा ( चाल ) इलाजे दर्द दिल
तुम से मसीहा हो नहीं सकता। वह कब आएगा दिन जिस दिन करूं श्रद्धान श्रीजिनका गुरू का तत्वका निज धात्मा का जैन शासन का ॥१॥ किसी को देख कर दुखिया हो करुणा रस का पल ऐसा घराथा जिस तरह विष्णुकुमार श्राकार वामन का ॥२॥ राम जैसी हो गर गम्भीरता पैदा मेरे मन में तो शाज्ञाकार दिल ऐसा बने जैसा था तछमन का ॥३॥ नज़र जाये नही हरगिज़ कभी गैरों के ऐषों पर, ऐष पोशीकी आदत हो ख़याल पाये न अवगुण का ॥४॥ राग अरु ष का विसाकुल भाष जाला रहे दिल से, नज़र आने लगे नकशा बराबर यार दुश्मन का ॥५॥
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न हो पैदा ख़याल हरगिज़ मुझे दुनिया की वातों का, वहां घूमे सर मेरा जिसजा हो चरचा जैन शासन का ॥६॥ न कानों में पड़े वात इश्किया किस्से कहानी की, मुन् मैं रात दिन चारित्र परमो वीर पुरुपन का ॥७॥ बुराई के लिये हो जाय बंद इकदम जुबां मेरी, वहां खोलू जुयां जिस नापे निर्णय होय नत्वन का ||८|| मुखी परजा रहे न्यामत पिजय हो जार्ज पंजम की, दूर दुनिया से हो सब रंगोगम, हो अन्त दुश्मन का ॥९॥
* इति श्री जैन भजन रत्नावली * (न्यामत विलास अङ्क २ )
समाप्तम् ,
पुस्तक मिलने का पना:Niamat Singh Jain Secretary District Board
HISSAR (Dist.)
Punjab.
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नोटिस न्यामतसिंह रचित जैन ग्रन्थमाला के निम्न लिखित २२ अंक (हिस्से) तय्यार किये गए है । मगर अभी तक सिर्फ बह ही हिस्से छपे है जिनके सामने मूल्य लिखा गया है।
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श्रक
नाम प्रक
ا
ram aur 900AM22225.08
जिनेन्द्र भजन माला जैन मजन रत्नावली जैन भजन पुष्पावली पचकल्याणक नाटक न्यामत नीति भविलदत्त तिलकासुन्दरा
नाटश जैन मजनमुक्तावली, गजरा भजन एकादशी खो गायन जैन भजन पचीसी कलियुगलीला भजनावली कुन्ती नाटक चिदानन्द शिवसुन्दरी नाट अनाथ रुदन जैन कालिज भजनावती रामचरित्र भजन मञ्जरी राजल वैराग्य माला ईश्वर स्वरूप दपण जैन भजन शतक थ्येटरोकल जैन भजन मंजरी मैना सुन्दरी नाटक
सजिल्द । १) - पुस्तक मिलने का पनान्यामतसिंह जैनी सेक्रेटरी डिस्ट्रिक्टवोर्ड,मु० हिसार (पंजाब)
الى لآل -
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लीजिये । सद्धर्म्म-प्रचारक मन्दिर सत्यनारायण देहली में
अंग्रेजी, हिन्दी और उर्दू
तीनों भाषाओं में
यंत्रालय
प्रत्येक प्रकार की छपाईका काम
( यानी पुस्तक, समाचार पत्र और जानवर्क श्रादि ) शुद्ध, सुन्दर, सस्ता और शोघ्र
यथासमय तयार कर दिया जाता है
एक बार कृपा कर कार्य भेज कर
परीक्षा कीजिये ।
निवेदक
Marknigh
अनन्तराम शम्म
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..@@ ra_20.. पण्डित अनन्तराम ६ प्रबन्ध से...'
अनन्तराम और साठे के । सद्धर्म प्रचारक यन्त्राल्य-देहली मे छपा ।
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