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________________ छप्पनदेवी इन्द्र पठाय, माना सेव करें अधिकाय । दर्पण विंव ऐसे जिन रहे, श्री मुमत पूजत मुखलहे ॥५॥ सकुट झुका सुरपति तत्कार, घरे सब वाजे इक पार । इन्द्र लखो तब अवधि विचार, पद्मप्रभू लीनों अवतार ॥६॥ हुक्म दियो धनपति उस घड़ी ऐरावत गजमाया करी ।। सब सुर देवी कर सिंगार, श्री सुपार्श्व पाए दर ॥७॥ चंद्र सूर्य सवही मिलाय, भवनपतो आए सर नाय || न्यंतर खगपति श्रानंद भरे, चंद्र प्रभू के दर्शन करे ॥८॥ भा परस्त सचीजिन लियो, माषा मयी बालक रच दियौं। माया नींद रची जिन मात, वंदे पुप्पदंत हरपात ॥९॥ सौंपे हाय पती के आय, लोधन सहससो इंद्र बनाय । रूपदेस तिरपत नहीं भयो, श्री शीतलचर्णनको नयो।१०॥ मेरुजाय सुर हुकम सुनाय, चोरोदधि कलशे भरलाय । सहस अठोसर कलश सँवार, श्री श्रेयांसशीस पर ढारा११॥ इन्द्र सची सव सुर हर्षाय, लये गंधोदक शोस चढ़ाय । नाना विधिकर जिन शृंगार. पूने वासपूज्य पद सारा॥१२॥ इन्द्राणि माता पे गई, देख जगत गुरू आनंद भई। । तिहुं जग तिलकर जो सियो,मानोविमलर पद लियो॥१॥ इन्द्र रचो नाठक तव पाय, श्री जिनके दश भव दर्शाय। शक्ति अनंतर खरूप, धन्य अमंत नाथ जग भूप ॥१४॥
SR No.010042
Book TitleJain Bhajan Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year1918
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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