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________________ २८ खाली हाथ गये लाखों ही, राजा साहूकार रे । जो धर्मार्थ लगावे सम्पति बही बड़ा सरदार रे ॥२॥ आठ अंग समकित के जामें, चार स्वपर हितकार रे । स्थिति करण उपगूहन वात्सल्य, निर्विचिकित्सा साररे ॥३॥ जो दुखियों की करुणा पाले, टाले विपति निहार रे । सोही सुख पावे तिर जावे, भवसागर से पार रे ॥४॥ कालेज जैन मदरसे खोलो, अरु पुस्तक भण्डार रे न्यामत ज्ञान दान सम जगमें, दूजा नहीं शुभकार रे ||५|| नोट " जिले हिसार में लांघड़ी एक छोटासा कस्बा है जो विश्नोई लोगों की वस्ती है वहां पर एक विश्नोई कमेटी है जिसके प्रेजिडेन्ट टांडीजी चौधरी दल्लूराम हैं आप अव फार्सी व उर्दू जुवान के एक आला दर्जे के शाइर (कवि ) हैं इस समय में आपके मुकाबले का कोई कोई कवि मिलता है आपका " कोसरी " तखल्लुस हैं आप मेरे बड़े मित्र हैं और जैन धर्म के विषय में प्रायः मेरे से वार्तालाप करते रहते हैं आपने आत्मा के विषय में २१ भजन बनाये हैं जो सर्व साधारण के हितार्थ नीचे लिखे जाते हैं देखो नम्बर ३१ इकत्तीस से ५१ तक ॥। इन भजनों में मात्मा का स्वरूप निश्चय नय से दिखलाया है "
SR No.010042
Book TitleJain Bhajan Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year1918
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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