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________________ ५३ ५८ (राग) फवाली (नाल ) कहरमा (चाल) लाजे दर्द दिल तुमसे मसीहा हो नहीं सकता। नोट-राम का भरत और केकड़े को जवाब देना। भयोध्या को मेरी माना में उलटा जा नहीं सकता। वचन जो कह दिया मैने उमे उलटा नहीं सना ॥ ॥ तेरे इस हुक्म की माता ना तापीन क्योंकर हो। टर्स अपने वचन मे यह जुबां पर ला नहीं सकता ॥२॥ मरत को राज करना है मुझं वन वन में फिरना है। किसीसे भी लिखा तकदीर मेठा जा नही माना॥३॥ राजसा कुछ नहीं अफसोम अय माता मेरे मन में . घुवंशो के दिल में ऐमा अम्मा आ नहीं गाना ॥क्षा रघुवंशी इमंशा कौनक बातों के पूर है । चाहं दुनियां पलट जाये फरक कुछ शा नहीं जाना ॥५॥ चाहे मूरज भूल जाये निकलना ठीक पूरब से । हकम माना का पर दिल से हमारे जा नही माना। धर्म के सामने माना राज और पाट या शय है । अगर जां भी चली जायं नो परमा श्रा नहीं सकता। भरत जा राज कर भाई यही तुझको मुनासिर है कभी फिर में भी भाऊंगा मगर अब था नहीं सकता।
SR No.010042
Book TitleJain Bhajan Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year1918
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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