SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१ किस नर, बैट्ट भला भाई बड़े के तुरन्त पर । ___ मैं तो श्री रघुवीर जी के इक परिस्तारों में हूँ ॥६॥ मात सीता वन में तकलीफें सहेगी किस तरह । क्या करूं किससे कह में सख्त लाचारों में हूँ ॥७॥ न्यायपत फिर मर्न न कर जोड़ पाता से कहा । चलो माई गम को लेथा मैं नाकारों मेंह ॥ ८॥ (राग) ज़िना (ताल) परी पलारी ठेका (चा ) हाय अच्छे पिया वहीं देश चुनालो हिद में जो धरायन है॥ नोट-केकई का भरन को लेकर वन में रामचन्द्रनी के पास जाना और वापिस पाने के लिये प्रार्थना करना । प्यारे सुनियो अरन मोरी घरको पधारो, तुम विन श्री कल्पावन है ॥ टेक ॥ हुई है भूल में बंशक बड़ी स्वना मुझ से। खता भी ऐसी कि जाना नहीं कहा मुझ से॥ भरत भी सुनने ही नागज होगया मुझ में। भरत क्या सारा ज़माना ही फिरपया मुझ से ।। हाय छोटे नड़ा सब सिर धुन मोह, निदा के वचन मुनापन है॥१॥
SR No.010042
Book TitleJain Bhajan Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year1918
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy