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________________ कहूं किससे अपना मैं माजरा न जरा घटा न जरा बढ़ा। मैं वही रहा जोकि पहिले था मेरा नाम नूरो जलाल है ।। न बका से मुझ मैं हुनर हुआ न फना से मेरा ज़रर हुआ। न मलक हुआ न वशर हुआ मेरा और ही सा जमाल है ॥३॥ कहीं जीव हूं कहीं ब्रह्म हूं कहीं नूर हूं कहीं जोत हूं । कहीं रूह हूं कहीं आत्मा यही हाल है यही काल है ॥४। मैं हूं देखता इल्म गैव से मेरी जात पाक है ऐब से । मुझे गहम है न गुमान है न कयास है न रू.शाल है। ५॥ मैं लतीफ हूं मैं लतीफ हू मैं लतीफ हू मैं लतीफ हूं । न कसोफ़ हूं न कसीफ़ हूं मेरो इद न गर्यो शुमाल है ॥६॥ मुझे कौसरी नही कुछ फना मैं बका बका मैं वका बका । नहीं गैर जिसको समझ सका मेरा इस तरह का सबाल है॥७॥ [राग] संकीर्ण भैरवीं [ ताल ] कहरवा [चाल ] घर से या कौन खुदा के लिये लाया मुझको । हुस्न लैला न कभी इसके बराबर होगा। · कोई जलवा न कभी रूह के हमसर होगा ॥१॥
SR No.010042
Book TitleJain Bhajan Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year1918
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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