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________________ बदन को मैं, तु समझा है खुदी को भूल बैठा है। यह क्या हालन भला नूने दिले चाक बदली है।।४।। न कहना कोसरी मुझको कि है है मर गया वह तो। मजल कैसी क़ज़ा कैसी नई पोशाक बदली है ॥५॥ ४१ (राग) कवाली तालकहरग [चाल इलाजे दर्द दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता ॥ फना को तू वका समझा वका को नू फना समझा। अगर समझा तो क्या समझा नसली मुद्दा समझा॥१॥ पड़े पत्थर तेरी इस ना समझ पर अय दिले नादां। बदन को भात्मा समझा न,तु खुदको जरा समझा ॥२॥ भरे हिन्द वता मुझ को किसे तू राम कहता है। मियां मुसलिम ज़रा कहना कि त फिसको खुदा समझा||३|| यही है आत्मा जिसके करशमे जा बना देखे । यही रूहे मुकद्दस है कि जिस को कित्रिया समझा ॥४ यही नूरे मनव्वर है कि जिसका सच यह पर तो है॥ यही है आत्मा जिस को वशर परमात्मा समझा || न तन होगा न धन होगा रहेगी आत्मा कायम । इसी का दौर दौरा है यही मै मामरा समझा ॥६॥
SR No.010042
Book TitleJain Bhajan Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year1918
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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