Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 54
________________ ५० न्यामत वहिरातम गति तजदे, अन्तर आतम होय । श्रव बंध मिटादे दोनों, परमातम पद होय ॥ ४ ॥ ૬ (राग) कवाली ( ताल - रूपक) (चाल) कौन कहता है मुझे मैं नेक अतवारों में हूँ ॥ नोट -- भारत का केकई से नाराज़ होना और रामचन्द्र जी के बनोनास जाने पर रंज करना ॥ जमीं मुझको छुपाले मैं गुनहगारों में हूं' । टूट कर गिरजा फलक मैं श्राज दुखियारों में हूं ॥ १ ॥ किस तरह दिखलाऊं अपना मुंह जगत् के सामने । केकई माता की करनी से शरम सारों में हूं ॥ २ ॥ अय मेरी माता तेरी दुनियां से न्यारी है मती । तेरे कारण आज मैं देखो खतावारों में हू ॥ ३ ॥ छाया अन्धेर और घर घर में मातम पड़गया । देख हालत रंजोगम के मैं गिरफ्तारों में हू ॥ ४ ॥ रघुकुल के आज दो शमशो क़मर जाते रहे । रहगया कम्बख्त मैं किस्मत से लाचारों में हूं ॥ ५ ॥

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