Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 52
________________ यामे दोष डा री बहनों, मानो जिनवाणी प्यारी बातको ॥ १ ॥ चिटी पंखी पखेरू देखो, पानी भी न पीये रातको ॥२॥। । कहे न्यायत तजो निशि भोजन, अंजल आदि फल पातको ॥ ३॥ (गग ) खडताल (तात ) वाइरसा ( चाल ) अपनी हमें भक्ती का कुन टीने दान ॥ बानो जैन किरया पे, डुक दीजे ध्यान ॥ टेक ॥ __मस उरनो जल अन छाना, गा में फिरेंजीव बहु नाना । देखलो कर के ध्यान ॥ वहनो० ॥ १ ॥ बीझी लकड़ी मत मारो, मत जीव जन्तु को मारो। तुम्हारा हो झल्यान ॥ बहनो० ॥ २ ॥ नहा धो जिन दर्शन कीजे नरभव का लाहा लीजे । मिले शिवपुर अस्थान ॥ बहनो०॥३॥ नित्य धर्म कर्म चित लायो, न्यामत मत पाप कमायो । कही ऐसी भगवान ॥ नहनो० ॥ ४ ॥

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