Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 53
________________ (राग) देश (तामा ) कहरवा (चाल ) वली देदे कान्हा मोमो मुग्ली देदे मोय ॥ अपने निज पद को मन खोय, अपने निज पद को मत खोय । वेतन मैं समझाऊं तोय, अपने निज पद को मत खोय ॥ टंक ॥ निज आतम अनुभव तनकर मत । पर परणति त होय विषय भोग में पड़ चेतन मत. निज रस नचन खोय ।। १ ।। निन परभेद विज्ञान प्रकाशा नित्य परमानन्द होय। राग कपाय हलाहल तज कर, पी यानम गुण नोय ॥२॥ अशुभ त्याग शुभ लाग ढोक रज, शुद्ध अवस्था जाय। करम कुनाचल तोड़ फोड़ कर मोह अरि रम चाय ॥"

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