Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 56
________________ है आज सारी अयोध्या में पड़गया मातम। जिधर को देखू उधर रंजोगम का है भालम । अन्धेर राज में छाये न किस तरह पर जो। हो दूर तुझसा रघुकुल का नैय्यरेआजम ॥ बेटा मात सुमित्रा और कौशल्या, नैनों से नीर वहावत है ॥२॥ मैं इक तो नारी हूं दुजे गई थी मति मारी । बिना विचार के जो बात मुंह से उच्चारी॥ "कलंक लगना था जो सो तो लग गया मेरे । किसी का दोष नहीं है करमगतो न्यारी । देखो कर्म बड़े वलवान किसी की भी नही पार बसावत हे ॥३॥ जो होना था सो हुआ अब खयाल दूर करो। कसूर माफ करो और सर पै ताज धरो॥ खड़े रहेंगे भरत चरत तेरी सेवा में। चमर फिरायगा लछमन खुशी से राज करो। न्यामत दिन सोचे करनी दुखदाई केकई खुद पछ-' ताबत है ॥४॥

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