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मैं हूं वह रूहे लतीफो वे नियाज़
मुझको दुनिया की नहीं हाजत कोई ॥ ४ ॥ कौसरी हर रग में हम रग हूँ।
सादगी मुझ में न है रंगत कोई ।। ५ ।।
(राग) कृषाली ( ताल ) कहग्या (चाल ) है वहारे याग
दुनियाँ बन्द रोज। कब कहा मैने कि मुश्ते खाक है।
आत्मा हूं और रूहे पाक हूँ ॥१॥ इसरते जन्नत, न दोज़ख़ का खतर ।
हर तरह ये खौफ हूँ ये वाक हूं ॥२॥ कौन कहता है कि मैं नादान है।
मै सरापा अक्ल है इद्राक ह ॥३॥ दीन दुनिया में नहीं मतलप मुझे।
ये न शादा न मैं ग़मनाक ९ ॥ ४ ॥ में न उरचानी से कुछ बदनाम हैं।
मैं न मोहनाजे जरो पोशाक हूं !! ५ ॥ हो नहीं सकती मुझे फ़िक्र मुबाश ।
वे नियाजे खुर्दना गुराक हूं ॥६॥