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मासिवा से कुछ इलाका ही नहीं ।
___ मैं गले मिलता हूं अपने यार से ॥ ३ ॥ फूल क्या है खार क्या है वे खवर ।
पूछ जाकर बुलबुले गुलज़ार से ॥ ४ ॥ घूमता हूं हाथ अपने वजद में ।
वे मज़ा हूं वोसए रुखसार से ॥ ५ ॥ हूं मैं अपना भाप आशिक गाफिलो ।
फायदा क्या गैर के दीदार से ॥ ६ ॥ मात्मा हूं और रूहे पाक हूँ।
कौसरी रखना तू मुझको प्यार से ॥ ७ ॥
(राग) कवाली (ताल) कहरवा ( चाल ) है वहारे वाग
दुनिया चन्द रोज़। रूह को होती नहीं जहमत कोई ,
आत्मा जैसी नहीं नैमत भोई ॥१॥ है बदन में पर बदन से है जुदा।।
ऐसी दिखलाए 'ग्ला कुदरत कोई ॥ २ ॥ दें नहीं सका मुझे जिल्लत कोई ।
'दे नही सकता मुझे इज्जत कोई ॥३॥