Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 46
________________ ४२ मासिवा से कुछ इलाका ही नहीं । ___ मैं गले मिलता हूं अपने यार से ॥ ३ ॥ फूल क्या है खार क्या है वे खवर । पूछ जाकर बुलबुले गुलज़ार से ॥ ४ ॥ घूमता हूं हाथ अपने वजद में । वे मज़ा हूं वोसए रुखसार से ॥ ५ ॥ हूं मैं अपना भाप आशिक गाफिलो । फायदा क्या गैर के दीदार से ॥ ६ ॥ मात्मा हूं और रूहे पाक हूँ। कौसरी रखना तू मुझको प्यार से ॥ ७ ॥ (राग) कवाली (ताल) कहरवा ( चाल ) है वहारे वाग दुनिया चन्द रोज़। रूह को होती नहीं जहमत कोई , आत्मा जैसी नहीं नैमत भोई ॥१॥ है बदन में पर बदन से है जुदा।। ऐसी दिखलाए 'ग्ला कुदरत कोई ॥ २ ॥ दें नहीं सका मुझे जिल्लत कोई । 'दे नही सकता मुझे इज्जत कोई ॥३॥

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