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किस्सए रूह व बदन में अभी जल्दी क्या है। भाप खुल जायगा जो जिसमें कि जोहर होगा ।।२।। हाथ जिस दिन तुझे आएगी वका की शाही । हेच नज़रों में तेरी मुल्के सिकन्दर होगा ॥३॥ छोड़ देगी इसे जब रूहे मुकद्दस ग़ाफ़िल । यह बदन मट्टी में मट्टी तेरा मिल कर होगा ॥४॥
आखिर इस हिर्मोहवा का है खातमा कि नहीं । मुजतरिब और कहाँ तक दिले मुज़तिर होगा || काम आएगा न यह जिस्म रक्कर ये रूह । श्राव मोती में न होगी तो वह पत्थर होगा ॥ ६ ॥ होंगे दुनियां में हजारों ही सखुन वर लेकिन । कौसरी भा न ज़माने में सखुन वर होगा ||७॥
[राग] कृपालो [नाल ] कहरवा [चाल है यहारे बाग
___ दुनियां चन्द गेज़ रूह यों निकलेगी जिसमें ज़ार से ।
जिस तरह नगमा हो जाहिर तार मे ॥१॥ वे खुदी मुझको खुदी में हो गई ।
क्या रहा मतलब के अगियार से ॥२॥