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(राग) कुवाली (ताल) शकुन्तला तुम्हें याद हो कि
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क (चाल) मैं वही हॅ प्यारी याद हो ।
मैं कभी तो शाहे जहान था तुम्हें याद हो कि न याद हो । कभी दर वदर फिरा ज्यू गढा तुम्हें याद हो कि न याद हो ॥१॥ कभी आसमां पे मीं हुआ। कभी घर में गोशय गजी हुआ । मेरा मुख्तलिफ गृही है पता तुम्हे याद हो कि न याद हो ||२|| कभी भाग हुआ शोलेज़ा कभी खाक में हुआ खुदनुमा । कभी आाव था कभी था हवा तुम्हें याद हो कि न याद हो || ३ || जो है कसरी व बका यही पेश्तर भी रुमाल था । मुझे याद है मेरा माजरा तुम याद हो कि न याद हो ॥४॥
मुझे
در
(राग) वामी (नाल) उप (चाल) में वही प्यारी शकुन्तला तुम्हें ग्रांट हो किन याद हो ।
मुक्के लोग समझे जिस कदर मेरा उससे बढ़ के कमाल है मैं हूं वह कमाले हे वका नदी जिसका खौफे जुवाल है ॥ १ ॥
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