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कभी विषयों में जाता है कभी भोगों में आता है। कहीं टिकता नहीं मृरख निपट नादान क्या कीजे ॥२॥ जवां पर ख्वाहिशें लाखों हजारों आरज़ दिल में। मगर होते नहीं पूरे कभी अरमान क्या कीजे ॥३॥ 'न्यायमत दिल को समझाओ करे सन्तोष दुनिया में। विना इसके नहीं चारा अरे अज्ञान क्या कीजे ॥१॥
(राग) कवाली (ताल) कहरवा (चाल) कत्ल मत करना मुझे तेगो नबर से देखना ॥ वेशुवा बदकार की गलियों में जाना छोड़दे । छोड़दे आंखें मिलाना दिल लगाना छोड़दे ॥१॥ भोली भाली सूरतों को देख ललचाओ न दिल । सवको सब चित चोर चंचल मूह लगाना छोड़दे ॥२॥ तर्क कर इनकी मुहब्बत यह चलन अच्छा नहीं। इनके जाना छोड़दे घर में बुलाना छोड़दे ॥३॥ ऐसे काफिर को कभी दिलमें जगह दीजे नहीं। हो यह जिस महफ़िल में उस महफ़िल में जाना छोडदे।।॥ जिक्र तक करना नहीं अच्छा है इनका न्यायमन। है यही वहतर कि यह किस्सा फिसाना छो दे ॥५॥