Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 34
________________ [राग] कमाती [ सात ] कहरमा [चाल] है बहारे वाग दुनियां बन्द रोग। फायदा क्या सोहरसे अगियार से। दोस्ती साज़िप है अपने पार में ॥१॥ नाशिक तह मुझे मुख चाहिये। काम बुलमुल को नहीं सार से ॥२॥ उनसरे रूही हूँ मैं स्वाझी नहीं। ___ कट नहीं वसा कभी नववार से ॥३॥ है वरावर शहरो वैहां सप मुझे।। शेर से दहशत न खसरा मार से ग४॥ सूद है मुझको न छुछ जुकसान है। दीप से गुफ्तार से रफतार से ॥५॥ मुझको तुत्फे वस्ल जिस्मानी नही। मिस्त्र हूँ मैं अपने ही दीवार से ॥६॥ कोसरी लिप और सहानी गमला । आत्मा खुश है तेरे अशआर से ॥७॥ (राग) कचाती (माल) फहरवा (चाल) है वहारे धाग दुनिया चंद रोज़

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