Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 39
________________ (गग) कवाती (लाल) कह वा (चाल) न० ३७ की पका मेरे न हरगिज़ है न मसान और वतन मेरे। जमीं मेरी नज़र मेरे पिसर मेरे न जन मेरे ||१|| अकेला हूं अकेला हूँ अबला हूं अकेला हूँ। पिढर मेरे न मां मेरे न भाई और बहन मेरे ॥२॥ न खाता हुं न पीता हूं जनमता हूँ न मरता हूं। लहू मेरे न रग मेरे न गन मेरे न तन मेरे ॥३॥ न नाक अपने न अांख अपने न कान अपने न सर अपने। न हाथ अपने न टांग अपने न छात्रों और बदन मेरो॥४॥ बदाके आसमां काई में वह मूरज ज़माने में। निकलता हूँ न छुपता हुं नही लगता गदन मेरे ॥५॥ किसी से मैं न कोई मुझ से, मै हूँ कोसरी यक्ता । पिदर मेरे न मां पर पिसर मेरे न जन मेरे ॥६॥ (राग) पाली (ताल) कदरश (गल) न०३७ की मज़े लेती है क्या क्या मान्मा परमात्मा होकर । कि हासिलकी वका मैंने सुदीमें खुद फ़ना होकर।।२।। मैं जिसको ढूंढता फिरता था अपने आप में पाया ।

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