Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 38
________________ न मैं अर्ज हूँ न मैं तूल हूं न मैं खार हूँ न मैं फूल हूं। न मैं शाख हूंन अमूल हूं मुझे आप मुझ से करार है ॥४॥ मैं हूं कोसरी मैं हूं कोसरी मैं हूँ कोसरी मैं हूँ कोसरी । मेरा लाधड़ीमें कयाम है जो करीब शहर हिसार है ॥५॥ (राग) कबाली (ताल) कहरवा चाल इलाजे दर्दे दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता ॥ गुलिस्तां और बियावॉ में मैं ही तो हूं मैं ही तो हूं। दिलं रंजूर शादों में मैं ही तो हूं मैं ही तो हूं ॥१॥ कमी उलझा दिया खुदको कभी सुलझा दिया खुदको । किसी की जुल्फ पेचां में मैं ही तो हूं मैं ही तो हूँ ॥२॥ कभी ज़ाहिद कभी आसी कभी पंडित कभी काज़ी । गरज़ हिन्दू मुसलमां में मैं ही तो हूं मैं ही तो हूं ॥३॥ कभी उस्ताद आलिम हूं कभी हूं तिफले अवजद ख्वां । स्कूलों में दविस्तां में मैं ही तो हूं मैं ही तो हूं ॥४॥ कोसरी सूरतें क्या क्या बदलता हूं मैं आलम में । मलक में और इन्सां में मैं ही तो हूं मैं ही तो हूं ॥५॥

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