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(राग) कवाली (ताल) कहरवा (चाल) है यहारे घागे दुनिया
चन्द रोज़ इब्तदा और इन्तहा मुझको नहीं।
वह वकाई हूं फना मुझको नही ॥१॥ दोन के झगड़ों से हूं फरिगनशीं ।
खौफ़ दुनिया का जरा मुझको नहीं ।।२।। हूं सरापा एक हुस्ने ला जवाल ।
हसरते नाज़ो अदा मुझको नहीं ।।३।। खुद वखुद हूं और खुद मुख्तार हूं।
- यानि तकलीफ खुदा मुझको नहीं ॥४॥ अस्लियत में हाल यकसां है मेरा । ।
सदमए रंजो वला मुझको नहीं ॥५॥ हूं सुवर्रा जीनते पोशाक से।
लज्जते श्रावो गिजा मुझको नहीं ॥६॥ यह तो सब कुछ है मगर अफ़सोस है।
कोसरी अपना पता मुझको नहीं ॥७॥