Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 27
________________ २३ सुन सुनरी वहना विधा परम सुखकार 1 हां हां विद्या सांची हमारी हितकार ॥१॥ सुन मुनरी बहना विद्या है नारी का सिंगार । हां होरी विद्या बिना पशू सम नार ||२|| सुन सुनरी बहना विद्या है जग में धन सार | हां होरी या को लेवें ना चोर चकार ॥३॥ सुन सुनरी विद्या सबका करे उपकार हां हां या से राजा भी करे सत्कार ||४|| t है न्यानत कैसी दानी हमारी सरकार । हां हॉरी फीना घर घर में विद्या परवार ||५|| २५ (राग) क़वाली (ताल) कहरवा (चान) कत्ल मत करनी मुझे तेग़ो तबर से देखना ॥ (राम का रण भूमि में रावण को समझाना) सुन अरे रावण कई मैं बात निज मन की तुझे / फेरदे सीता सती ख्वाहिश नहीं धन की मुझे ||१|| गर करे कोई बुराई में बुरा मानू नहीं । और का गुण भी लगती है बात गुण की सुभे ॥ २॥

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