Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 28
________________ २४ है कलह दुनिया में दुखदाई दुजानिव देखलो | याद है यह बात प्यारी जैन शासन की मुझे ॥३॥ वे, वजह लाखों मनुष्य रण में मरेंगे देखले । क्यों दिखाता है अरे जालिम विना रण की मुझे ॥४॥ बिन सिया सारा जगत सुनसान लगता है मुझे । है ख़बर कुछ भी नहीं घर वार और तन की मुझे ॥ ५ ॥ मेरे जीते जी सिया दुख पाय तेरी कुँदे में । जिंदगी अच्छी नहीं लगती है एक छिन की मुझे ॥ ६ ॥ हेच हैं सीता बिना दुनियां की सारी नैमतें । एक पल ठंडी नहीं लगती हवा वन की मुझे ||७|| तीर गर चिल्ले चढ़ाया तो कुयामत आयगी । फेर मानू गा नही सौगन्द लछमन की मुझे ||८|| न्यायमत रघुवीर ने यह भी कहा गर दे सिया । वख्श दूगा सब खुता कुछ ज़िड नहीं ररण की मुझे ॥ ॥ २६ (राग) कुवाली (ताल) कहरवा (चाल) कह लेजाऊ दिल दोनों जर्दा में इसकी मुश्किल है ॥ नहीं काबू में आता है दिले नादान क्या कीजे । इसे काबू में लाने का कहो सामान क्या कीजे ॥१॥

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