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बुग्न कीना फूट घर घर में नज़र आने लगे । बात्सल्य जाता रहा अपना विगाना हो गया ॥ ८ ॥ न्यायमत अब तो जैन मत की इशात कीजिये | | सोते सोते मोह निद्रा में जुमाना हो गया ॥ ६॥
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(चाल) कुवाली (ताल कहरवा ) अदम से जानिये हस्ती, तलाशे यार में आए
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नोट- यह गजुल अज़ीज वीरचंद्र सुपुत्र लाला फतेचंद जैन रईस हिसार के लिये बनाई गई जो उस ने देहली में अपनी शादी में माह भार्च सन् १६१६ में पढ़ो थो ॥
मुबारक आज का दिन है, मुबारक हो मुवारक हो । सदाएं आ रहीं हैं-दिन मुबारकहो मुवारक हो ॥ १ ॥ स्टेशन शहर देहली पर खुशीसे जव वरात आई । दो जानिव से निशात आई, मुबारक हो मुबारक हो ||२|| फलक पे रक्स जोहरा कर रही है, देख शादी को । सुबां से कह रही है दमदम शादी मुबारक हो ॥ ३ ॥ लगी थी जो तमन्ना सब के दिल में एक मुद्दत से ख़ुशी से आज बर आई, मुबारक हो मुवारक हो ॥ ४ ॥
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