Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ १२ बुग्न कीना फूट घर घर में नज़र आने लगे । बात्सल्य जाता रहा अपना विगाना हो गया ॥ ८ ॥ न्यायमत अब तो जैन मत की इशात कीजिये | | सोते सोते मोह निद्रा में जुमाना हो गया ॥ ६॥ ११ (चाल) कुवाली (ताल कहरवा ) अदम से जानिये हस्ती, तलाशे यार में आए 7 नोट- यह गजुल अज़ीज वीरचंद्र सुपुत्र लाला फतेचंद जैन रईस हिसार के लिये बनाई गई जो उस ने देहली में अपनी शादी में माह भार्च सन् १६१६ में पढ़ो थो ॥ मुबारक आज का दिन है, मुबारक हो मुवारक हो । सदाएं आ रहीं हैं-दिन मुबारकहो मुवारक हो ॥ १ ॥ स्टेशन शहर देहली पर खुशीसे जव वरात आई । दो जानिव से निशात आई, मुबारक हो मुबारक हो ||२|| फलक पे रक्स जोहरा कर रही है, देख शादी को । सुबां से कह रही है दमदम शादी मुबारक हो ॥ ३ ॥ लगी थी जो तमन्ना सब के दिल में एक मुद्दत से ख़ुशी से आज बर आई, मुबारक हो मुवारक हो ॥ ४ ॥ -

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65