Book Title: Jain Bhajan Ratnavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 24
________________ C हमारी कौन सुनता था, कौन हमको पढ़ाता था । हज़ारों आजतक मूरख, फिरें बहनें हमारी हैं ॥४॥ आपने की कृपा दृष्टी, जो कन्याओं की हालत पर 1. हज़ारों पाठशाला आज हर नगरी में जारी हैं ॥५॥ . खुशी क्योंकर न होवें हम, न क्यों धन्यवाद गावें हम | हमारे सामने बैठी, महारानी हमारी हैं ॥६॥ मुवारक हाथ से अपने, हमें ईनाम देवेंगी । इसी कारण हमारी, पाठशाला में पधारी हैं ॥७॥ हमें आशा है एक दिन को, मिडिल भी हो ही जावेगा । बड़ी दानी दया धारी, महारानी हमारी हैं ॥८॥ कहे - न्यामत सुनों बहनों, प्रभू से श्राज यह मांगो कि लेडी डेन की जय हो, जो हितकारी हमारी हैं ॥६॥ २१ (चाल - ) कुवाली (ताल - कहरवा ) कहॉ लेजाऊं दिल दोनों जहां में इसकी मुश्किल है | 7 14 सुनों अब जैन सरदारो, ज़रा दिल में दया धारो । डूबती क़ौम की कश्ती, बचाना ही मुनासिव है ॥१॥ हिताहित जैन मंडल ने, है वस समझा दिया हमको ! अमल इस पर तुम्हें करना, कराना ही मुनासिव है ॥२॥

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