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भरे कलह बढाने वाले, परे हट हट हट अरे शील डिगाने वाले परे हट हट हट अरे सती चुराने वाले, परे हट हट हट भाई को हटाने वाले, परे हट हट हट कहां सुत भाई-कुमत उर छाई न्यामत कुमति इटावो ।। कुछ शान कर, विज्ञान कर, टुक ध्यान कर ॥१॥
(चाल) नाटक भैरवी (ताल कहरवा ) शरण धरम की लेले चेतन भटक भटक गया हार । कोई कोई विन धरम नहीं हितकार। उत्तर दक्खन पूरव पच्छम इंडा सभी संसार । पाली-यहही-है दुःखों का मोचन हार । शरण ॥
(चौपाई) लाख उपाय करो नर नारी। .
विधना लेख टरे नहीं टारी ॥ स्वारथ के मृत पितु महतारी ।
यह हमने निश्चय कर धारी।