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१८
जागे सो महावीर
सा बच्चा माँ को छोड़कर जंगल में भाग गया। वहाँ जाने पर भी उस बच्चे का गुस्सा शान्त न हो पाया और जैसे ही माँ की शक्ल याद आई तो वह चिल्लाकर बोल पड़ा, 'हाँ, हाँ, मैं तुमसे नफरत करता हूँ, नफरत, नफरत, नफरत !' जंगल से वह आवाज प्रतिध्वनि के रूप में गूंज कर आती है- 'हाँ, हाँ मैं तुमसे नफरत करता हूँ, नफरत, नफरत, नफरत !'
बच्चा भयभीत हो जाता है और सोचता है कि यहाँ पर भी कुछ बच्चे रहते हैं जो मेरी आवाज पहचानते हैं और उन्होंने भी मुझे बदले में जवाब दिया है। वह मासूम डरा-सहमा भागकर वापस माँ के आँचल में सिमट गया, माँ की आगोश में समा गया और रोकर कहने लगा, 'माँ, जंगल में कुछ बच्चे हैं जो मुझसे नफरत करते हैं।' माँ समझ ही जाती है, क्योंकि वह प्रतिध्वनि के सिद्धान्त से वाकिफ थी। वह जानती थी कि हम प्रकृति को अपनी तरफ से जो देंगे, प्रकृति हमें वही लौटाएगी। यह तो विज्ञान का नियम है, कार्य और कारण का सिद्धांत। यदि कोई व्यक्ति पानी को भाप में बदलना चाहे तो उसे नीचे आग जलानी ही होगी। भले ही वह सौ-सौ प्रार्थनाएँ बिना आग के पानी को भाप में बदलने के लिए कर ले, पर वे प्रार्थनाएँ पानी को भाप में नहीं बदल पाएँगी। यह प्रकृति का विज्ञान है। जो इस विज्ञान को समझता है, वह बुरा कार्य नहीं कर सकता। किसी को गधा कहकर स्वयं को गधा कहलवाना कौन पसंद करेगा ! ___ उस माँ ने बेटे को बड़े प्यार से कहा, 'बेटे ! तुम मेरे कहने से फिर जंगल में जाओ और इस बार वहाँ जाकर बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए कहना, मैं तुमसे प्यार करता हूँ, प्यार, प्यार, प्यार! और बदले में तुम्हें सौ-सौआवाजें प्यार की मिलेंगी।' यह मनोवैज्ञानिक घटना इस सत्य को स्थापित करती है कि हर ध्वनि की प्रतिध्वनि है। हमें वही प्राप्त होगा जो हम अपनी तरफ से औरों को देंगे। तब बच्चा जंगल में जाकर पुकारता है, 'हाँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ। प्यार, प्यार, प्यार !' बदले में जंगल से प्रतिध्वनि गूंजती है, 'प्यार, प्यार, प्यार....आई लव यू।' यही है कर्म की व्याख्या और इसकी आधारशिला। जो व्यक्ति प्रकृति के इस सिद्धान्त की तहों को, इस गूढ सत्य को, इस रहस्य को समझता है, वह व्यक्ति ही भगवान द्वारा प्रदत्त इन तीन सूत्रों को सहजता से समझ सकता है।
जं जं समयं जीवो, आविसइ जेण जेण भावेण। सो तंमि तंमि समए, सुहासुहं बंधए कम्मं॥
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