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साधना राग की, प्रार्थना वीतराग की
नगर डगर-डगर पुत्र को हाथों में लिए हुए डोलने लगी। वह लोगों से प्रार्थना करती कि कोई उसके पुत्र के विष का हरण कर किसी भी तरह उसे जीवित कर दे। लोग कहते कि यदि हमारे किसी त्याग या कार्य से तुम्हारा पुत्र जीवित हो सके तो हम वह सब कुछ सहर्ष करने को तैयार हैं, पर हकीकत यही है कि मृत को किसी भी उपाय से जीवित नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार गौतमी को घूमते हुए काफी समय हो गया। तभी उसे पता लगा कि गाँव के बाहर एक बहुत बड़ा वैद्य आया हुआ है जिसे लोग भगवान बुद्ध कहते हैं। उसने सुना कि वह हर तरह के रोग दूर करने में समर्थ हैं। उसके पास हर दु:ख, हर रोग की चिकित्सा है।
गौतमी खुशी से झूम उठी और वह अपने मृत पुत्र सहित भगवान के पास पहुँची। वह भगवान से बोली, 'हे महावैद्य ! मैं बड़ी उम्मीदें लेकर आपके पास आई हूँ। कृपया आप मेरे पुत्र को पुनः प्राणवान करें। भगवान ने उस मृत बच्चे को देखा और कहा, 'यह तो मृत है।' गौतमी बोली, 'हे करुणावतार! कृपया आप भी गाँव वालों की तरह मेरे पुत्र को मृत न कहें और मुझ पर दया कर इसे जीवनदान दें।' भगवान ने गौतमी को ध्यानपूर्वक देखा, और देखा उसके अतीत और भविष्य को। भगवान ने जाना कि अहो! यह गौतमी ही तो अपने अतीत में भगवान काश्यप बुद्ध की बहिन रही थी पर अपनी कर्म-परम्परा के चलते इसने नीच गौत्र में जन्म लिया और यह जन्म-मरण की श्रृंखला इसके दुःख का कारण बनी।
भगवान ने उसके साधनामय भविष्य को जानकर उसे बोध देने की दृष्टि से कहा, 'हे गौतमी ! मैं तुम्हारे पुत्र को जीवित कर सकता हूँ , पर इसके लिए तुम्हें एक कार्य करना होगा।' गौतमी खुशी से चहक कर बोली, 'प्रभु! आप मुझे जो भी कार्य सौंपेंगे, मैं अवश्य ही करूँगी। आप शीघ्र ही आदेश दें।' भगवान बोले, 'तुम ऐसे किसी घर से सरसों के दानों की एक चिमटी ले आओ, जहाँ कभी कोई मृत्यु नहीं हुई हो।' गौतमी ने कहा, 'अरे ! एक चिमटी भर सरसों के दाने तो मैं अभी ले आती हूँ।' यह कहकर वह अपने मृत पुत्र को वहीं छोड़कर गाँव की ओर चल दी। वह एक-एक घर में जाने लगी और सब जगह एक चिमटी सरसों के दानें माँगने लगी। लोग कहते कि एक चिमटी तो क्या, तुम एक बोरी सरसों के दाने ले जाओ, यदि हमारे देने से तुम्हारा पुत्र जीवित होता हो। तभी गौतमी कहती, लेकिन भगवान ने यह भी कहा है कि जहाँ कभी कोई मृत्यु न हुई हो, वहाँ से ही दाने लाने हैं। आपके घर में कोई मृत्यु तो नहीं हुई है?' लोग कहते, 'अरे ! भला यह भी कभी
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