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विवेक : अहिंसा को जीने का गुर
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हर हाल में मन में शांति रखना और सबके प्रति सदैव शांत सम्मानजनित मृदु मधुर वाणी का उपयोग करना भाषा-समिति है। ऐसी वाणी का उपयोग करना भी अहिंसा की ही उपासना है।
तीसरी समिति है- एषणा समिति। अर्थात् सम्यक् भोजन। जैसे वाणी से विवेकपूर्वक बोलना चाहिये वैसे ही भोजन भी विवेकपूर्वक करना चाहिए। इस सन्दर्भ में कुछ बिन्दुओं पर ध्यान दें
(१) वही भोजन स्वीकार करें जो आपको प्रेम और आदरपूर्वक परोसा गया है।
(२) भोजन उतना ही लें जितना आप खा सकें। जूठन न छोड़ें, किसी को जूठा भोजन भी न खिलाएँ।
(३) अजीर्ण के समय भोजन न करें। अजीर्ण के समय किया गया भोजन विष के समान होता है।
(४) सदा हितकारी और परिमित भोजन करना चाहिए। हितकारी भोजन करने वाला सौ वर्ष का दीर्घ आयुष्य प्राप्त करता है।
(५) भूख लगने पर ही भोजन करें। बेमन से खाना न खाएँ।
(६) यदि तबीयत खराब है तो सबसे पहले अपना आहार सुधारिये। आहार सुधरेगा तो स्वास्थ्य स्वतः सुधर जाएगा। ___(७) ध्यान रखें, 'जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन्न। जैसा पीवे पानी, वैसी बोले बानी।' इसलिए खानपान के प्रति पूरा विवेक रखना चाहिए। चाणक्यनीति तो कहती है कि जो जैसा अन्न खाता है, उसके वैसी ही संतान पैदा होती है। दीपक काले अंधेरे का भक्षण करता है तो उसकी संतान भी काले काजल जैसी ही होती है। ___ (८) नाखून काटकर साफ रखें। नाखूनों में मल समाहित रहता है। जब भी भोजन करें, पहले हाथ अवश्य धो लें। भोजन जितनी आवश्यकता है उससे दो ग्रास कम खाएँ। जूठे मुँह न बोलें। मौनपूर्वक भोजन लों। भोजन के स्वाद में थोड़ा तीखा-फीकापन हो तो उद्विग्न न होएँ। भोजन करते समय शान्त और प्रसन्न रहना आहार-ग्रहण की सम्यक् विधि है।
(९) कम खाओ, गम खाओ। अतिभोजी और अतिभोगी दोनों ही अतिरोगी होते हैं। एक बार भोजन करने वाले महात्मा होते हैं, दो बार भोजन करने वाला
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