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जागे सो महावीर
हम विचारों के प्रति जागरूकता लाएँ। गैर-जरूरी विचारों पर नियंत्रण का शिकंजा कसें। उन विचारों से बचें, जिनका कोई सिर-पैर नहीं है। हम हकीकत से जुड़ें। वर्तमान के साधक बनें। विचारों को व्यवस्थित करें। विचारों को व्यवस्थित करना जहाँ एक चुनौती है, वहीं एक बहुत बड़ी साधना। नकारात्मक विचारों से बचें, सकारात्मक विचारों को ही स्थान दें। निर्विचार होना ऊँची बात है, पर उस स्तर तक पहुँचने के लिए शुरुआत करें- सकारात्मक विचारों से। इससे व्यर्थ की सोच, व्यर्थ की कल्पनाएँ और व्यर्थ का तनाव कम होगा। दिवास्वप्न से बचेंगे। ___तीसरी अवस्था है-जागृति की। व्यक्ति के आत्मगुणों के विकास में जो अवस्था सहायक बनती है, वह है जागृति। भगवान कहते हैं जो सोते हैं उनके जगत में सारभूत अर्थ नष्ट हो जाते हैं, अत: सतत आत्मजागृत रहकर पूर्वोपार्जित कर्मों का क्षय करो।
सतत आत्मजागृति रहे। अन्तरदृष्टि पूर्वक, अन्तरबोध पूर्वक किसी भी पहलू के प्रति किया जाने वाला व्यवहार आत्म-जागृति है। मुझसे यदि कोई धर्म का मार्ग देने के लिए कहे तो मैं कहूँगा कि धर्म का राजमार्ग, धर्म का सार और धर्म का प्राणतत्त्व समाया है मात्र एक आत्म-जागरूकता में। तुम सामायिक करते हो, जप-तप करते हो या अन्य कोई धार्मिक अनुष्ठान करते हो, बहुत अच्छी बात, पर इन सबसे भी पहले जो महत्त्वपूर्ण है वह है सतत आत्म-जागरूकता। जागरूकता को साधने के लिए ही भगवान अपनी ओर से प्रेरणा दे रहे हैं। माना मूर्छा बहुत प्रगाढ़ है, क्रोध आता है, काम-विकार भी पीड़ित करते हैं, अभिमान भी उठता है, माया-लोभ भी नहीं छूटते। ___सैकड़ों बार अनेक धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न करने के बावजूद जब राग-द्वेष नहीं छूटते तो व्यक्ति के मन में यह प्रश्न उठता है कि क्या करूँ? मैं कहूँगा, नहीं छूटता है तो मत छोड़ो, क्रोध आता है तो क्रोध कर लो, काम पीड़ित करता है तो वासनाओं को भोग लो, अहंकार की स्थिति होने पर उससे भी गुजर जाओ। कोई दिक्कत नहीं, हमारी अपनी ही सींची गई जड़ें हैं। हमारे अपने ही बोये गये बीज हैं। बचने से काम न चलेगा। पर इन सबके साथ आज से एक चीज को जोड़ लें, वह है होश और बोध। क्रोध करेंगे तो होशपूर्वक। क्रोध करते समय व्यक्ति को यह होश रहे कि मझे अभी क्रोध आ रहा है। क्रोध को प्रकट करो तो यह होश रहे कि अभी मेरे अन्दर गालियाँ चल रही हैं। अथवा क्रोध प्रगट हो गया। अब सब कुछ शांत है।
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