Book Title: Jage So Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 247
________________ जागे सो महावीर २३८ के मार्ग को व्यक्ति आगे फैलाए, हर घर अपने आप में मन्दिर बने, घर-घर तक महावीर की वाणी का प्रचार और प्रसार हो । महावीर के सिद्धान्तों का पालन और प्रचारण, एक मन्दिर बनाने के पुण्य से सौ गुना अधिक है । एक व्यक्ति मन्दिर बनाता है और दूसरा व्यक्ति किसी हिंसक को अहिंसक बनाता है। मैं कहूँगा कि ऐसा करके उसने सौ मन्दिर बनाने जितना पुण्य अर्जित कर लिया। आज ऐसे मन्दिरों की जरूरत है जो आदमी को आदमी बनाए, उसे क और एक बनाए । आज अहिंसा - मंदिर और अहिंसा - विद्यालयों की जरूरत है । जैसे हिंसा का प्रशिक्षण दिया जाता है, मैं कहूँगा तुम अहिंसा का प्रशिक्षण दो । हिंसा से कैसे कब्जा होता है, यह शिक्षा तो बहुत दी जा चुकी । अब कोशिश यह हो कि अहिंसा से कैसे विजय प्राप्त की जा सकती है। प्रबुद्ध मानवता जगे । धार्मिक लोगों का इस सन्दर्भ में विशेष दायित्व है। धरती पर स्वर्ग का निर्माण करने के लिए नरक को मिटाना होगा, नरक की आग को बुझाना होगा । वैर - विरोध, द्वेष - दौर्मनस्य पर विजय प्राप्त करनी होगी । भगवान ने कहा कि 'अधार्मिकों' का सोना ही श्रेयस्कर है। 'जो चोर हैं, आतंकवादी, डाकू, लुटेरे और देशद्रोही हैं ऐसे व्यक्ति यदि जगे रहे तो संसार बरबाद ही होगा । ये जितने समय तक सोए रहते हैं, कम से कम उतने समय तक तो लोग इनके कुकृत्यों से बचे रहते हैं । इतिहास में एक बहुत ही प्रसिद्ध राजा हुआ, नादिरशाह । कहते हैं कि वह रात को सुरापान करके, गणिकाओं के साथ अठखेलियाँ करता हुआ बहुत देरी से सोता था और वह इस कारण सुबह भी बहुत देरी से उठा करता था । राजा की इस हरकत से सभासद बहुत नाराज होते और वह उसे प्राय: कहा करते थे कि आप जल्दी उठा करें अन्यथा राज्य का संचालन अच्छी तरह से नहीं हो पाएगा। पर नादिरशाह को किसी की बात अच्छी नहीं लगती। एक दिन नादिरशाह के दरबार में एक फकीर आया। फकीर से नादिरशाह बोला, 'बाबा ! हमारी देर से उठने की आदत के कारण सभी सभासद हमें टोकते रहते हैं, क्या आप भी अपनी तरफ से कुछ कहना चाहेंगे?' फकीर बोला, 'सम्राट ! अगर गुनाह माफ हो तो सच बोलने का साहस करूँ।' राजा बोला, 'तुम्हें अभयदान देता हूँ जो चाहते हो वो कहो ।' फकीर बोला, 'सम्राट ! आप जैसे लोग सोए ही रहें तो अच्छा है । ' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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