Book Title: Jage So Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 245
________________ २३६ जागे सो महावीर बात बोध में उतर जाएगी, उस दिन तुम क्रोध कर ही न पाओगे। मैं सिगरेट नहीं पीता; क्यों? दुनिया में बहुत-से सन्त सिगरेट पीते हैं, चिलम फूंकते हैं या तम्बाकू खाते हैं। मैं इसलिए सिगरेट नहीं पीता क्योंकि मैं अच्छी तरह समझ और जान गया हूँ कि नशा व्यक्ति के आध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों के लिए ही घातक है। क्रोध इसलिए नहीं करता क्योंकि यह बात बोध में आ गई है कि क्रोध करना सबसे बड़ी बेवकूफी है। फिर भी मानव-मन है। कभी-कभार क्रोध की सूक्ष्म तरंग उठ ही आती है, क्रोध की एक छोटी-सी चिंगारी उभर ही जाती है, पर क्रोध मुख से बाहर निकले उसके पहले ही होश जगा देता है कि शांति तुम्हारा लक्ष्य है। तुम्हें शान्त रहना है और तत्काल क्रोध शान्त हो जाता है। दाम्पत्य-जीवन हो अथवा क्रोध, लोभ हो या परिग्रह सबके साथ व्यक्ति का होश जुड़ा रहे। उसे हर क्षण यह बोध रहे कि-हाँ, यह वस्तुएँ हैं, इनका मैं उपभोग कर रहा हूँ अथवा इनका मैं संचय कर रहा हूँ। साथ में एक सुई भी नहीं जाने वाली है फिर व्यर्थ का परिग्रह क्यों? मैं साल में लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करा देता हूँ, पर हर क्षण यह बोध रहता है कि ये सब मुझसे अलग हैं। संसार तो नदी-नाव का संयोग मात्र है। नदी में जैसे तरंगें उठती और गिरती रहती हैं वैसे ही यहाँ जीवन है। किससे जुड़ा जाए और किसे छोड़ा जाए। क्या भोगा जाए और क्या त्यागा जाए! कभी भोग का मोह तो कभी त्याग का मोह ! निस्पृहता रहे, सहज आत्मजागरूकता। भगवान कहते हैं कि जीवन की हर वृत्ति को सम्पादित करते हुए व्यक्ति आत्म-जागरूक रहे। क्रोध नहीं छूटता, अस्सी वर्ष के हो जाने पर भी पत्नी नहीं छूटती। भीतर के विकार नहीं छूटते। बहुत मालाएँ फेर लीं, बहुत सामायिक और बहुत प्रतिक्रमण कर लिए, पर मनोविकार नहीं छूटते। मैं कहता हूँ छूट सकते हैं। महावीर का यह सूत्र हर प्राणी अपना ले कि सब काम करने की छूट है बशर्ते होश और सजगता रखी जाए। अगर होश हर कार्य के साथ जुड़ा रहे, तो गलत-गलत छूट जाएगा और अच्छा-अच्छा रह जाएगा। इसीलिए भगवान कहते हैं 'जो सोते हैं, जो मूर्छित है, उनके जगत् में सारभूत अर्थ नष्ट हो जाते हैं। अत: सतत जागृत रहकर पूर्वार्जित कर्मों को क्षय करो। इसी सन्दर्भ में अगला सूत्र है - जागरिया धम्मीणं, अहम्मीणं च सुत्तया सेया। वच्छाहिव भगिणीए, अकहिंसु जिणो जयंतीए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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