Book Title: Jage So Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 241
________________ २३२ जागे सो महावीर हो अथवा जीवन का पर्याय या स्वरूप न देखा हो। आज हम जिस मकान या जमीन को अपनी कह रहे हैं, कल दूसरा व्यक्ति उसका स्वामी हो जाएगा। व्यक्ति कहता है मेरा मन्दिर, मेरा मकान। अरे ! मृत्यु तुम्हें सबसे पराया कर देगी। तुम जिस जगह को अपनी मान रहे हो, तुमसे पहले हजारों व्यक्ति इसे अपनी मानमानकर संसार से विदा हो चुके हैं। संसार में चारों ओर ममत्व और सुषुप्ति का ही खेल चल रहा है। कहानी बताती है कि किसी संत ने किसी सम्राट के महल को ही सराय और धर्मशाला कह डाला था। राजा का चौंकना स्वाभाविक था। संत ने कहा सराय वह है, जहाँ मुसाफिर आकर ठहरते हैं। तुम्हारा महल भी सरायखाना है, जहाँ अब तक कई मुसाफिर ठहरे हैं, चले गए हैं। अभी तुम हो, उससे पहले तुम्हारे पिता, उससे पहले उनके पिता, उससे पहले इन पिताओं के पिता, उससे पहले....! __सम्राट ने कहा, तुम क्या कहना चाहते हो ? संत का जवाब था, सम्राट जहाँ इतने सारे मुसाफिर आये, रुके, चले गये। वह सराय नहीं तो और क्या है ? सम्राट मुस्करा उठते हैं। साधुवाद देते हैं संत को इस बोध को प्रदान करने के लिए। पहले मूर्छा थी, अब जागरण हो गया। पहले पत्थरों में रुंधे थे, अब पत्थरों के पार हो गये। मूल है समझ मूर्छा की, मूर्छा से मुक्त होने की। दूसरी अवस्था है - स्वप्न। स्वप्न यानी मन का भटकाव। अकेले में समझ आने वाली मन की उठापटक। आपको कैसे स्वप्न आते हैं, इससे अपने मन की स्थितियों को पहचानें। डरावने, डकैती वाले, मैथुन वाले या देवी-देवताओं के, मन की स्थिति को पहचानने के लिए स्वप्न अच्छे साधन बन सकते हैं। ___ व्यक्ति के चित्त में विचार और कल्पनाएँ चौबीस घण्टे चलते रहते हैं। व्यक्ति अपना अधिकांश जीवन अतीत की स्मृति और भविष्य की कल्पनाओं में बिता देता है। ऐसा नहीं है कि स्वप्न अर्थात कल्पनाएँ रात को ही उठती हों। व्यक्ति दिन में भी सपना देखा करता है। एक मिनट के लिए भी व्यक्ति निर्विचार या शान्तचित्त नहीं हो पाता। और कुछ नहीं तो वह अपने तल-भँवरे में पड़े अटाले के बारे में ही सोचने लगेगा कि इतनी बोतलें इकट्ठी हो गयी हैं, इतना यह सामान इकट्ठा हो गया है, कल इसको बेचूंगा। अथवा वह घर के सामने पड़े कचरे के बारे में ही सोचने लगेगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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