Book Title: Jage So Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 242
________________ जागे महावीर दुकान में बैठा-बैठा सोचेगा कि कल ऐसा कर लूँगा अथवा इस साल अच्छी कमाई होगी तो मकान दुमंजिला करा लूँगा । है तो भिखारी, पर सपने देखेगा सम्राट बनने के। सपने देखने पर कोई रोक तो है नहीं, इसलिए पता नहीं क्या-क्या सपने व्यक्ति देख लिया करता है। अधिकांश व्यक्ति रात में ही नहीं, दिन में भी सपने देखा करते हैं। इन्हें ही दिवास्वप्न कहते हैं। ये रात के सपनों से अधिक खतरनाक होते हैं । दिवास्वप्न एक तरह से मन का भंवरजाल है | फंसे कि गये काम से। मन की शांति, सुकून सब किसी और के कब्जे में ऐसा हुआ कि एक बार शेखचिल्ली को रास्ते में कोई सेठ मिल गया। सेठ के पास घी का घड़ा था जो उसे अपने घर तक पहुँचवाना था । उसने शेखचिल्ली को कहा कि-'तुम घड़ा सिर पर रखकर मेरे घर तक पहुँचा दो, मैं तुम्हें मजदूरी के दस पैसे दूँगा ।' उस जमाने में दस पैसे की भी अहमियत थी, शेखचिल्ली खुशी-खुशी घड़ा सिर पर रखके चलने लगा। पीछे-पीछे सेठ चल रहा था। शेखचिल्ली चलतेचलते दिवास्वप्न में खो गया । वह सोचने लगा कि मुझे मजदूरी के जो दस पैसे मिलेंगे उनसे मैं अंडे खरीदूँगा। अंडों से मुर्गी पैदा होगी। फिर मुर्गी से ढेर से अंडे । उनकी आमदनी से मैं एक बकरी खरीदूँगा । बकरी दूध देगी और उस दूध को बेचकर मेरे पास पैसा आता जाएगा। फिर मैं एक सुन्दर स्त्री से विवाह कर लूँगा । पत्नी दहेज में बहुत सारा धन लाएगी, मैं अपना धन और उसका धन मिलाकर किराने की एक दुकान खोल लूँगा। मेरी दुकान पर बहुत-से ग्राहक आया करेंगे, मैं बहुत व्यस्त रहूँगा। जब मैं खाना खाने घर नहीं पहुँच पाऊँगा तो पत्नी मेरे बेटे के साथ दुकान मुझे बुलाने आएगी । बेटा आकर मुझे कहेगा-'पापा-पापा, खाना खाने चलो।' पर ग्राहकों की बहुत भीड़ होने के कारण मैं उसे गर्दन हिलाकर इंकार करूँगा और....! शेखचिल्ली ने जैसे ही इंकार करने के लिए गर्दन हिलाई, घड़ा सिर से जमीन पर आ पड़ा। सारा घी मिट्टी में मिल गया । २३३ सेठ जो पीछे आ रहा था, चिल्ला उठा । उसने कहा, 'अरे बेवकूफ ! मेरा सारा घी मिट्टी में मिला दिया।' शेखचिल्ली बोला, 'अरे सेठ ! तेरा तो सिर्फ घी ही बरबाद हुआ है, मेरा तो बसा-बसाया संसार ही बरबाद हो गया ।' शेखचिल्ली ! मैं नहीं समझता तुम किस पर हंस रहे हो ! शेखचिल्ली पर या अपने आप पर ? ध्यान रखो, यह किसी एक शेखचिल्ली की कहानी नहीं है वरन हर व्यक्ति जो कल्पनाओं के आकाश में गोते लगाता रहता है, अपने आप में शेखचिल्ली ही तो है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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