Book Title: Jage So Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 235
________________ २२६ जागे सो महावीर ऐसे कोहरे से घिरा पाता है जहाँ उसे किसी ऐसे गुरु या मार्गदर्शक की आवश्यकता अनुभव होती है जो उस कोहरे को छाँट सके, उस गहन तमस् को मिटा सके, आत्मा पर लगी सींखचें और काराएँ बिखेर सकें। महावीर ऐसे ही सूर्य-पुरुष साबित हो सकते हैं। लोग कदम बढ़ाने के बावजूद मंजिल प्राप्त नहीं कर पाते क्योंकि पता नहीं माया कब हावी हो जाए। लेकिन माया जब भी हावी होगी तब-तब महावीर के सूत्र आत्म-जागरण के लिए शंखनाद साबित हो सकते हैं। बात तब की है, जब अतीत में किसी ने ऐसे ही अपने कदम बढ़ाए थे। वह रात को सो चुका था, पर रात को आने-जाने वाले सन्तों के पाँवों की आहट अथवा लगने वाली ठोकर के कारण कभी कोई सन्त मेघ विचलित होकर यह संकल्प कर बैठता है कि संयम की डगर मेरे लिए नहीं है, मेरा अतीत ही मेरे लिए श्रेष्ठ है। सूर्योदय होने पर सन्त मेघ जैसे ही राजमहल जाने के लिए तत्पर होते हैं, उन्हें भगवान की वाणी सुनाई देती है। भगवान मेघकुमार को सम्बोधि देते हुए, उसे झकझोरते हुए कहते हैं-'क्या तुम एक ही रात में लगने वाली ठोकरों से इतने विचलित हो गए? अरे मेघ ! स्मरण तो कर जब अतीत में तुझे आत्मबोध नहीं था और मनुष्यत्व की पर्याय भी नहीं थी। जंगल में आग लग जाने पर तूने गजराज के भव में एक खरगोश के प्राणों की रक्षा के लिए तीन दिन-तीन रातें एक पाँव पर खड़े होकर बिताईं। एक जन्तु को बचाने के लिए जब तूने इतना कष्ट सहन कर लिया और आज तू मानव-भव में एक ही रात में लगने वाली ठोकरों से इतना विचलित हो गया कि स्वीकार किया गया मार्ग छोड़ने को तत्पर हो रहा है? मेघ मुनि अन्तर्मन में उतर गए और उनके सामने अतीत का परिदृश्य साकार हो गया। तभी उसने अपना संकल्प महावीर के समक्ष दोहराया-'प्रभु ! आज तो मुझे दो-चार सन्तों के पाँव की ठोकर लगी है, पर अब से मैं अपना सम्पूर्ण जीवन सब सन्तों की सेवा में ही बिताऊँगा। अरे दो-चार तो क्या, अब तो हजार-हजार ठोकरें भी मुझे जन्म-जन्म तक इस मार्ग से विचलित न कर सकेंगी। ___महावीर के सूत्र उस हर शख्स के काम आ सकते हैं जो इस तरह से विचलित हो जाया करते हैं। ये सूत्र उस हर व्यक्ति के लिए उपादेय हो सकते हैं जो कि सत्य की बातें तो करते हैं पर सत्य की तरफ कदम नहीं बढ़ाते हैं। मैं महापुरुषों के सूत्रों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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