Book Title: Jage So Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 238
________________ जागे सो महावीर बात आगे की नहीं सधपाई। क्योंकि व्यक्ति अप्रमत्तता नला पाया। मैं फिर कहता हूँ विरति होना सरल है, पर अप्रमत्तता आनी और मूर्छा टूटनी कठिन है। महावीर के सूत्र हर व्यक्ति के हाथ में अप्रमत्तता, जागरूकता और सजगता के दीप की तरह हैं। जिसके हाथ में दीप है, कंदील या लालटेन है, वह चाहे कैसे ही घुप्प अंधेरे में हो, पर अपना मार्ग प्राप्त कर ही लेता है। ऐसे ही दीप को रोशन करने के लिए महावीर के आज के सूत्र हैं। भगवान कहते हैं सीतंति सुवंताणं, अत्था पुरिसाण लोगसारत्था तम्हा जागरमाणा, विधुणध पोराणयं कम्म। भगवान कहते हैं-'जो पुरुष सोते हैं उनके जगत में सारभूत अर्थ नष्ट हो जाते हैं। तुम सतत जागृत रहकर पूर्वोपार्जित कर्मों का क्षय करो।' __ भगवान का सूत्र है-जो सोते हैं उनके जगत में सारभूत तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। मार्ग तो उनके लिए है जो मार्ग का अनुसरण करें। जो मार्ग को जानने के बाद भी सुप्त पड़े रहते हैं उन्हें मार्ग-फल कहाँ से प्राप्त हो सकता है? उपलब्धियाँ उन्हें ही प्राप्त होती हैं जो आत्म-जागृति का अलख आठों याम जगाए रखते हैं। जो व्यक्ति सुप्त और मूर्छित हैं, उन्हें कभी कोई उपलब्धि प्राप्त नहीं होती। उनके पास तो जो होता है वह भी नष्ट हो जाता है। सोए रहने का अर्थ यहाँ शरीर को आराम देने के लिए किए जाने वाले विश्राम से नहीं है, वरन् यहाँ सोए रहने का अर्थ है व्यक्ति का प्रगाढ़ मूर्छा में फंसे रहने से है। व्यक्ति की चेतना के सुषुप्त होने से है। पतंजलि ने चित्त की तीन अवस्थाएँ कहीं- पहली सुषुप्ति, दूसरी स्वप्न और तीसरी जागृति। इन तीनों के पार जो चित्त की अवस्था है, वह है परा। परा अर्थात् परम। पहली स्थिति है सुषुप्ति। आज दुनिया में सुषुप्ति और मूर्छा का ही अधिक प्रभाव है। इसी के चलते व्यक्ति चाहते हुए भी कीचड़ से नहीं निकल पाता। वह दलदल में और अधिक धंसता जाता है, पर निकल नहीं पाता। वह यदि किसी पशु-भाव योनि में घिर चुका है तो वह उस भाव से मुक्त नहीं हो पाता। जब तक जीवन में मूर्छा के लंगर न खुलें तो मैं फिर वही कड़वी बात दुहराऊँगा कि व्यक्ति द्वारा की जाने वाली सब क्रियाएँ राख पर लीपापोती के समान होंगी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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