Book Title: Jage So Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 213
________________ २०४ जागे सो महावीर बुद्धिमान होता है और बिना विवेक के दिन भर खाने वाला पशु होता है। (१०) हमेशा ताजा भोजन करें। बासी भोजन से परहेज रखें। कहावत है, 'ठंडो न्हावे, तातो खावै उणरे बैद कदे नहीं आवै। ऊभो मूतै, सूतो खावै, तिणरो दलदर कदै न जावै।' ये जो कुछ मूलभूत बातें है, एषणा समिति के पालन के लिए उपयोगी हैं। अन्न को अच्छी तरह चुन-बीन कर, धोकर उसका उपयोग करें। शाकाहार तो करें ही, पर उसमें भी सात्त्विकता का विशेष विवेक रखें। श्रेष्ठ भोजन और श्रेष्ठ जीवन को किसी मंत्र की तरह अपना लें। चौथी समिति है आदान-निक्षेपण समिति अर्थात् विवेकपूर्वक किसी भी वस्तु को उठाना-रखना। हर वस्तु को व्यवस्थित रखें ताकि अंधेरे में भी ढूँढना चाहो तो तुम्हें तुम्हारी वस्तु मिल जाए। जो अव्यवस्थित होते हैं, वे जरूरत पड़ने पर अपनी चीजों को पाने के लिए पागलों-सी हरकत करने लगते हैं। उतावला सो बावला।' ज्यादा जल्दबाजी ही व्यक्ति को अव्यवस्थित करती है। हर वस्तु को व्यवस्थित रखना एक प्रकार से जीवन में मर्यादा और अनुशासन को स्वीकार करना है। घर को साफ-स्वच्छ रखिये, सजा-सँवार कर रखिए। सुबह जगने पर सबसे पहले अपने बिखरे घर को सजाइये। यह एक अच्छी एक्सरसाइज भी होगी और योगाभ्यास भी। ___ पाँचवीं समिति है परिष्ठापनिका समिति। विसर्जन भी विवेकपूर्वक हो, यह धर्म की सिखावन है। मल, मूत्र, थूक,कफ, पीक, गंदगी इत्यादि जिस भी चीज का विसर्जन करना हो, विवेकपूर्वक कीजिए। हो सकता है आप शौच के लिए गए। जहाँ मल-मूत्र का विसर्जन कर रहे हैं, वहाँ चींटी-मकोड़े चल रहे हों। सावधान ! आपकी यह निवृत्ति भी आपके लिए हिंसा का अर्जन कर रही है। देख-सम्हलकर विसर्जन करें। बड़े शहर में तो लोग नौ तल्ले से ही कचरा नीचे फेंकते हैं। सम्भव है, नीचे से कोई भला आदमी गुजर रहा हो। वह सीधा उसके सिर पर गिरेगा। ऐसा करके तुम अपने लिए थूका-फजीती मोल ले रहे हो। जरा सोचिये कोई आप पर ऐसे ही गंदगी गिराए तो क्या होगा? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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