Book Title: Jage So Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 231
________________ २२२ जागे सो महावीर जिस घर के सभी सदस्यों द्वारा ऐसे विनय का और ऐसी निरभिमानता का पालन किया जाता है, वहाँ का वातावरण सदैव मधुर और सौम्य रहता है। जब बेटा या बहू अपनी मर्यादा-शिष्टता को रखते हए सुबह उठते ही बजर्गों के पाँव छूते हैं तो बड़ों के हृदय से उनके लिए आशीष ही निकलता है - 'खुश रहो। उन शब्दों का आभामंडल घर के सारे वातावरण को सौम्य और निर्मल बना देता है। __भगवान ने विनय को धर्म का मूल बताया है। जहाँ भी गुरुजन मिल जाएँ, जो भी गुरुजन मिल जाएँ, उन्हें बड़े प्यार से वन्दन करें। रास्ते में आप जा रहे हैं और आपको अपने गुरु दिख जाते हैं, चाहे उनसे आपने बारहखड़ी ही सीखी हो, स्कूटर रोकें, उन्हें प्रणाम करें और अपने रास्ते चल दें। आपको ऐसा करने में शायद आधा मिनट ही लगेगा पर आपके द्वारा समर्पित किया गया प्रणाम गुरु के हृदय में वह जगह बना जाएगा कि वे आधे घंटे तक आपको दुआएँ देते रहेंगे कि उसका विद्यार्थी आज इतना बड़ा व्यक्ति बन गया है पर वह अब भी अपने प्राइमरी टीचर' का इतना सम्मान करता है। यह सदैव स्मरण रखो कि चाहे तुम विश्वविद्यालय के कुलपति भी हो जाओ, पर जिससे तुमने बारहखड़ी सीखी है, उसके आदर और सम्मान में कभी कमी मत आने दो। पाँचवाँ आवश्यक कर्म है 'कायोत्सर्ग' । देह के प्रति ममत्व के त्याग का नाम ही कायोत्सर्ग है। हम प्रतिक्रमण के दौरान कायोत्सर्ग की क्रिया संपादित करते हैं। कायोत्सर्ग का आज क्या स्वरूप है? आज तो कायोत्सर्ग के नाम पर चार या आठ नवकार गिन लिए जाते हैं और समझते हैं कि कायोत्सर्ग हो गया। कायोत्सर्ग ऐसे नहीं होता। ____ मूलत: धर्म ने यह सीख दीथी कि सत्ताईस श्वासोश्वास तक अर्थात् सत्ताईस बार श्वास का आना और सत्ताईस बार श्वास का जाना, देह को शिथिल करके, पूरी तरह विश्राम की स्थिति में पहुँचाने का नाम ही कायोत्सर्ग है। यानी अपने ध्यान को साँस पर केन्द्रित करके शरीर-भाव को पूरी तरह शिथिल करना। जब लोगों से यह स्थिति नहीं सध पाती तो वे बैठे-बैठे झपकियाँ लेते हैं। इससे अच्छा तो यह है कि वे चार-आठ नवकार ही गिन लें। इसीलिए उन्हें नवकार गिनने की प्रेरणा दी जाती है। व्यक्ति सत्ताईस श्वासोश्वास तक यह चिन्तन कर सके कि मेरे द्वारा क्याक्या अपराध हुए, क्या गलत कृत्य हुए हैं, मुझे उनका प्रायश्चित कैसे करना है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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