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धार्मिक जीवन के छह सोपान
उदायी उसके राज्य की तरफ आ रहे हैं तो वह बहुत ही खुश हुआ। उसने उनके स्वागत और अगवानी के लिए जोर-शोर से तैयारियाँ प्रारंभ करवा दीं।
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राज्य के गणमान्य व्यक्ति राजर्षि के दर्शन और वन्दन के लिए पहुँचने लगे । जब उदायी ने यह सब देखा तो वे इस बात से अभिभूत हो गये कि मेरे राज्य के लोग अब भी मेरा इतना सम्मान करते हैं। पूरा राज्य राजर्षि के आगमन की तैयारियों में जुटा था, पर बात बिगाड़ने वालों की और चुगलखोरों की भी कहाँ कमी होती है ? दुनिया में विदुर कम मिलेंगे, शकुनि ज्यादा होते हैं। महाराणा प्रताप कम, जयचन्द्र ज्यादा मिलेंगे ।
एक ऐसा ही जयचन्द्र राजा के पास पहुँचा और बोला कि यह सारा राज्य एक व्यक्ति की अगवानी के लिए इतना व्यस्त है जो एक बहुत बड़ा आश्चर्य है । राजा ने कहा, 'इसमें आश्चर्य की क्या बात है ? राजा उदायी स्वयं इस राज्य में पधार रहे हैं। हमें उनका स्वागत तो करना ही चाहिए ।' वह व्यक्ति बोला, 'राजन्, आपको पता भी है कि पूर्व महाराज इतना लम्बा और उग्र विहार करके और महावीर जैसे भगवत् और दिव्य पुरुष का सान्निध्य छोड़कर यहाँ आपसे अपना राज्य वापस लेने आ रहे हैं अन्यथा महावीर जैसे वीतराग पुरुष का सान्निध्य छोड़ने और ऐसे उग्र विहार करने का कोई प्रयोजन नहीं हो सकता ।'
कहते हैं कि तीन लोगों के पास अक्ल नहीं होती। एक तो है बंदर जिसे बस नकल करना आता है। दूसरा है बाजा जिसे दूसरों ने बजाया तो बजा अन्यथा चुप-चाप पड़ा रहा और तीसरा है राजा जिसे मंत्रियों, सलाहकारों और चाटुकारों ने जैसा सुझाया या समझाया, वैसे ही वह चलता और समझता है।
उस व्यक्ति की बात सुनकर राजा विचलित हो उठा। राजा ने कहा, 'मुझे तुम्हारी बात में कुछ तो सच्चाई लगती है अन्यथा उदायी इतना उग्र विहार करके इस ओर क्यों आते, पर उदायी मुझ तक पहुँच कर राज्य माँग सके, उसके पहले ही मैं ऐसी व्यवस्था करूँगा कि वह मेरे करीब ही न पहुँच सके।'
राजा ने दूसरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि 'कोई भी व्यक्ति संत उदायी की अगवानी न करे । न उन्हें अन्न-जल दे और न ठहरने का स्थान ही । जिस व्यक्ति ने भी राजाज्ञा का उल्लंघन किया, उसके घर को जला दिया जाएगा। उसके हाथ-पाँव जंजीरों से बांधकर उसे कारागृह में डाल दिया जाएगा। उसके बाद भी उसे सख्त से सख्त सजा दी जाएगी।' सारी प्रजा यह घोषणा सुनकर
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