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धार्मिक जीवन के छह सोपान
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पहले उस परमात्मा को धन्यवाद दो, उसके गुणों का कीर्तन और स्तुति करो। यदि तुम ऐसा करके सोते हो तो तुम्हारी रात भय-मुक्त होगी। ___ भगवान ने जो तीसरा 'आवश्यक' कहा, वह है 'प्रतिक्रमण' । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव इन चारों स्थितियों में किसी भी तरह का अपराध हो जाए तो उस अपराध की निंदा करना, उस अपराध की गर्दा या आलोचना करना और उस अपराध को मिथ्या करने का प्रयास करने का नाम ही 'प्रतिक्रमण' है।
अपराध या गलती हो जाना स्वाभाविक है। मनुष्य तो क्या देवताओं से भी गलती हो जाया करती है, पर उस गलती पर पश्चात्ताप करना और उस गलती को फिर कभी न दुहराने का संकल्प करना ही प्रतिक्रमण है। ___ सुबह-शाम बैठकर प्रतिक्रमण के पाठों को दोहराना तो मात्र द्रव्य प्रतिक्रमण ही है, पर सच्चा प्रतिक्रमण तो तब होता है जब व्यक्ति सुबह-शाम एकांत में बैठकर यह चिंतन करता है कि मझसे अबतकक्या-क्या पाप, अपराध या गलतियाँ हुई हैं ? उसकी चेतना में पश्चात्ताप के अंकुर प्रस्फुटित होते हैं। उसका हृदय इस दृढ़ संकल्प से भर जाता है कि अब मैं इन गलतियों को किसी भी परिस्थिति में नहीं दोहराऊँगा। प्रतिक्रमण के ऐसे भाव व्यक्ति की चेतना को परम उत्कृष्ट स्थिति तक पहुँचा देते हैं।
आप लोगों को मृगावती के केवलज्ञान प्राप्त करने की घटना का स्मरण होगा। मृगावती, भगवान के सभामंडप में उनकी देशना सुन रही थी। वहीं सूर्य
और चन्द्र दोनों एक साथ देशना सुनने आए थे, इसलिए प्रकाश इतना अधिक था कि कब सूर्यास्त हो गया, पता ही नहीं चल सका। मृगावती वहीं बैठी हुई देशना सुनती रहीं। अचानक सूर्य और चन्द्र, दोनों भगवान की देशना सुनकर अपनेअपने स्थान पर लौटने लगे। जैसे ही वे अपने स्थान पर लौटे, मृगावती ने देखा तो वह चौंकी कि बाहर तो घटाटोप अंधेरा छा गया था। अमावस्या की सघन काली रात्रि ने अपना पहरा चारों ओर जमा दिया था। मृगावती तुरंत अपने रहने के स्थान की तरफ रवाना हुई।
वह जैसे ही अपने स्थान पर पहुँची कि चन्दनबाला ने उसे उपालंभ दिया और देर से लौटने के कारण डाँटा भी।
वह प्रतिक्रमण के लिए बैठ गई और उसके हृदय में बार-बार प्रायश्चित के भाव आने लगे कि 'अहो ! मेरी नासमझी के कारण, मेरे द्वारा मर्यादा भंग के
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