Book Title: Jage So Mahavir
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 216
________________ २०७ धार्मिक जीवन के छह सोपान अंग्रेज थी पर उसने हिन्दू परंपरा में संन्यास स्वीकार किया था। उसका नाम था नानी। उसने हरिद्वार में दीक्षा ली थी। ___ यह योग की बात रही कि उसके संन्यस्त होने के मात्र दो दिन बाद ही उसके गुरु का देहावसान हो गया। पर गुरु ने उसे साधनात्मक जीवन को कैसे जिआ जाए, यह बात बता दी थी। गुरु ने उसे बताया था कि सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा में डुबकी लगाने के बाद उन गीले कपड़ों में ही भगवान की प्रार्थना एवं अभ्यर्थना की जाए और उसके बाद योग-आसन आदि किये जाएँ। गुरु ने संभवत: सोचा होगा कि जब यह दस-पन्द्रह दिन इस मार्ग को जी लेगी तब उसे आगे के साधनापथ के बारे में बताया जाएगा, पर गुरु की तो दूसरे या तीसरे दिन ही मृत्यु हो गई। ___ वह साधिका कुछ समय हरिद्वार के आश्रम में बिताने के पश्चात् हिमालय की कन्दराओं में चली गई। जिस सर्दी में त्रिदण्डी संतों या बड़े-बड़े ऋषियों की भी हिम्मत नहीं होती, उस भयंकर सर्दी में भी वह सुबह चार बजे उठकर अपने हाथ में कुल्हाड़ी लिए गंगोत्री की तरफ रवाना हो जाती। सर्दी में गंगोत्री का पानी बर्फ के रूप में जम जाता है। वह उस कुल्हाड़ी से बर्फ की तह को चीरकर हटाती और उसमें डुबकी लगाती और गीले कपड़ों में ही अपने आवास तक पहुँचती और प्रार्थना प्रारंभ कर देती।। ___ जहाँ लोग चिलम फूंककर, गाँजा पीकर या आग की आँच से अपनी सर्दी को दूर करने का प्रयत्न करते, वहीं वह महिला गीले कपड़ों में ही प्रार्थना में तल्लीन हो जाती। गंगोत्री में रह रहे साधकों में से वही एक अकेली ऐसी साधिका थी जो प्रतिदिन गंगा-स्नान करती थी। __ वहाँ पर सर्दी इतनी थी कि यदि आग एक बार बुझा दी जाए तो वह लकड़ी घंटों तक आग न पकड़े। उस महिला के हाथ इतने कट-फट चुके थे जितने सर्दी में किसी के पाँव भी न फटते हों। उनमें से हर समय खून रिसता रहता था। मूल्य इस बात का नहीं है कि उसको इस मार्ग से क्या मिला? महत्त्व तो इस बात का है कि उसने अपने गुरु द्वारा सुझाए गये मार्ग को हर हालत में कितनी तत्परता से जिया। यदि कोई व्यक्ति उतनी ही तत्परता से भगवान द्वारा बताए मार्ग को जीता है तो निश्चित रूप से वह महामार्ग उसके आध्यात्मिक सौन्दर्य और सुषमा को बढ़ाने में सहायक बनता है। हम भगवान के आज के सूत्रों को लेते हैं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258